Followers

Tuesday, September 13, 2011

गज़ल


कफन उठा कर यूँ क्या देखते हो
मुझे आज खुद से जुदा देखते हो.

बदन खाक बनने चला जा रहा है
समझो कि अब तुम हवा देखते हो.

पहलू में था जो , उसे छू न पाए
तुम आज दामन लुटा देखते हो.

दिल आईना है , जरा इसमें झाँको
सपना - सुहाना मिटा देखते हो.

मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो.

मेरी मौत का गम तुमको न होगा
मेरी मौत में फायदा देखते हो.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष – 1980)

21 comments:

  1. बहुत ही दर्दमय .भाव्मई सुंदर शब्दों मैं लिखी शानदार गजल /बहुत बहुत बधाई आपको /



    please visit my blog
    www.prernaargal.blogspot.com

    ReplyDelete
  2. बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।

    ReplyDelete
  3. मेरी मौत का गम तुमको न होगा
    मेरी मौत में फायदा देखते हो.

    अरुण जी,क्यूँ इतनी तोहमत लगाते है आप?
    आपकी सुन्दर गजल ने मन मोह लिया है.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरे ब्लॉग पर आप आये ,इसके लिए भी आभार.

    ReplyDelete
  4. मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
    तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो

    खूबसूरत गज़ल ..

    ReplyDelete
  5. क्या बात है! सारे अश्आर लाज़वाब

    ReplyDelete
  6. वाह .....बहुत उम्दा

    ReplyDelete
  7. बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ||

    ReplyDelete
  8. बदन खाक बनने चला जा रहा है
    समझो कि अब तुम हवा देखते हो....

    वाह वाह ... क्या खूब कहा है अरुण भाई...
    उम्दा ग़ज़ल...
    सादर बधाई...

    ReplyDelete
  9. ek-ek sher behtareen...
    mera pasandeeda...
    मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
    तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो.

    ReplyDelete
  10. बेहद ही अच्छी।
    बहुत ही अच्छी लगी।

    ReplyDelete
  11. पहलू में था जो , उसे छू न पाए
    तुम आज दामन लुटा देखते हो.

    ...बहुत मर्मस्पर्शी गज़ल. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  12. har lihaaj se achhee rachna..samajh bhi aayee hai, shabdon ka chayan achha hai

    Apne blog par fir se sajag hone ke prayaas me hoon:
    http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

    ReplyDelete
  13. पहलू में था जो , उसे छू न पाए
    तुम आज दामन लुटा देखते हो.
    ये जीवन का कन्ट्रास्ट है।
    बेहतरीन ग़ज़ल।

    ReplyDelete
  14. उम्दा ग़ज़ल....सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

    ReplyDelete
  15. आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है

    ...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था

    ReplyDelete
  16. लाजवाब गज़ल ...दिल में उतर गयी

    ReplyDelete
  17. सुन्दर प्रस्तुति...आभार

    ReplyDelete
  18. बहुत गहन भाव युक्त गजल....मन को अंतर तक स्पर्श करती...
    सादर !!!

    ReplyDelete
  19. मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
    तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो
    यह शेर बहुत पसंद आया। शुक्रिया।

    ReplyDelete
  20. बदन खाक बनने चला जा रहा है
    समझो कि अब तुम हवा देखते हो.


    वाह!!

    ReplyDelete