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Friday, September 23, 2011

कौन तारा झील से टकरा गया ....


बावरा मन गीत कोई गा गया
सीप से मोती छलक कर आ गया
और हँसने को घटायें छा गई
तुमको मेरा दर्द कोई भा गया............

दर्द से लिपटा हुआ संगीत था
या मेरी ही सिसकियों का शोर था
एक झोंका मुस्कुराता आ गया
और चुपके घाव को सहला गया............

कौन आयेगा विजन परदेस में
मौन पलकें क्यों प्रतीक्षा में बिछी
क्यों लहर में झूलता है चंद्रमा ?
कौन तारा झील से टकरा गया  ?????

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.

(रचना वर्ष- 1979)

14 comments:

  1. तुमको मेरा दर्द कोई भा गया ||

    अति सुन्दर ||

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  2. आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
    ____________________________________

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  3. बहुत सुन्दर भाव्।

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  4. बहुत ही प्यारे और निराले गीत हैं ...

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  5. बहुत प्यारा सा गीत |
    मेरे ब्लॉग में भी आयें-

    **मेरी कविता**

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  6. बहुत सुन्दर कविता| धन्यवाद|

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  7. वाह ...बहुत खूब ।

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  8. बेहतरीन दर्द से लिपटा हुआ संगीत था ,या मेरी ही सिसकियों का शोर था। अरूण भाई को मुबारकबाद।

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  9. दर्द से लिपटा हुआ संगीत था
    या मेरी ही सिसकियों का शोर था
    एक झोंका मुस्कुराता आ गया
    और चुपके घाव को सहला गया...

    बहुत सुन्दर ... ऐसी रचनाएँ पढ़ मन आनंदित हो जाता है

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  10. खूबसूरत रचना ,बधाई

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  11. बहुत सुंदर रचना. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.

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  12. क्यों लहर में झूलता है चंद्रमा ?
    कौन तारा झील से टकरा गया.....

    :)) वाह! खुबसूरत....
    सादर....

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  13. इसे तो गाकर पॉडकास्ट करिये....

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