बावरा मन गीत कोई गा गया
सीप से मोती छलक कर आ गया
और हँसने को घटायें छा गई
तुमको मेरा दर्द कोई भा गया............
दर्द से लिपटा हुआ संगीत था
या मेरी ही सिसकियों का शोर था
एक झोंका मुस्कुराता आ गया
और चुपके घाव को सहला गया............
कौन आयेगा विजन परदेस में
मौन पलकें क्यों प्रतीक्षा में बिछी
क्यों लहर में झूलता है चंद्रमा ?
कौन तारा झील से टकरा गया ?????
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष- 1979)
तुमको मेरा दर्द कोई भा गया ||
ReplyDeleteअति सुन्दर ||
आज 23- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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बहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteबहुत ही प्यारे और निराले गीत हैं ...
ReplyDeleteबहुत प्यारा सा गीत |
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग में भी आयें-
**मेरी कविता**
बहुत सुन्दर कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteवाह ...बहुत खूब ।
ReplyDeleteबेहतरीन दर्द से लिपटा हुआ संगीत था ,या मेरी ही सिसकियों का शोर था। अरूण भाई को मुबारकबाद।
ReplyDeleteदर्द से लिपटा हुआ संगीत था
ReplyDeleteया मेरी ही सिसकियों का शोर था
एक झोंका मुस्कुराता आ गया
और चुपके घाव को सहला गया...
बहुत सुन्दर ... ऐसी रचनाएँ पढ़ मन आनंदित हो जाता है
खूबसूरत रचना ,बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना. बधाई इस सुंदर प्रस्तुति के लिये.
ReplyDeleteक्यों लहर में झूलता है चंद्रमा ?
ReplyDeleteकौन तारा झील से टकरा गया.....
:)) वाह! खुबसूरत....
सादर....
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteइसे तो गाकर पॉडकास्ट करिये....
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