यौवन का अभिमान छोड़कर
जिस दिन मुस्काएगा
भोला-भाला रूप ये तेरा
उस दिन भा जाएगा.
कितने दिन तक यौवन देगा
साथ ! कभी सोचा है ?
शीशे का दर्पण भी कल को
तुझसे कतराएगा.
प्रेम किसे कहते हैं , तूने
जाना अभी कहाँ है
अगर अभी ना समझ सका
तो बाद में पछताएगा.
आकर्षण को प्रेम समझ कर
ओ इतराने वाले
आकर्षण के भ्रम में तेरा
सब कुछ खो जाएगा.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
बहुत सही लिखा है आपने
ReplyDeleteसुंदर रचना!
बहुत सही लिखा है आपने | बधाई |
ReplyDeleteमेरी रचना देखें-
मेरी कविता:सूखे नैन
बिल्कुल सही कहा आकर्षण तो महज धोखा है।
ReplyDeleteआकर्षण तो पल -दो -पल के लिए ही होता है ..
ReplyDelete---भोला-भाला रूप ये तेरा
ReplyDeleteउस दिन भा जाएगा ||
बधाई ||
खूबसूरत प्रस्तुति ||
आकर्षण को प्रेम समझ कर
ReplyDeleteओ इतराने वाले
आकर्षण के भ्रम में तेरा
सब कुछ खो जाएगा.
बहुत सुन्दर.सत्य वचन
कमाल की अभिव्यक्ति है आपकी.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार,अरुण जी.
आपकी इस रचना में कई यथार्थवादी बाते हैं। न आकर्षण प्रेम होता है न ही यौवन शाश्वत।
ReplyDeleteयथार्थ को कहती अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर आँखें खोलने वाली बात कही है आपने अपनी कविता के ज़रिये ...
ReplyDeleteसहज, सरल किन्तु गूढ़ अर्थों को अभिव्यक्त करता गीत अरुण भाई... सादर बधाई...
ReplyDeleteयौवन का अभिमान छोड़कर
ReplyDeleteजिस दिन मुस्काएगा
भोला-भाला रूप ये तेरा
उस दिन भा जाएगा.
....गहन दर्शन और शाश्वत सत्य का बहुत सुन्दर भावमयी चित्रण..बधाई !
आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
ReplyDeleteजय माता दी..
सच हैं निगम जी ... प्रेम को जल्दी पहचान लेना चाहिए ... मधुर रचना है ...
ReplyDeleteनव रात्री की मंगल कामनाएं ..
क्या सुन्दर बात कही आपने...
ReplyDeleteसत्य है...इसे मन में धारण कर सदा स्मृति में संचित जागृत रख ले व्यक्ति तो कितने सारे दुखों से पार पा ले...
बहुत ही सुन्दर व प्रेरक इस रचना के लिए आभार....
प्रेम और आकर्षण में बहुत अंतर है । जब भ्रम टूटता है तो व्यक्ति बिखर जाता है।
ReplyDeleteआकर्षण को प्रेम समझना धोखा ही है सच है!
ReplyDeleteSahi kaha hai Aapne.
ReplyDeletebahut sundar rachna........aabhar
ReplyDeleteआपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
ReplyDeleteकृपया पधारें
चर्चा मंच-652 , चर्चाकार-दिलबाग विर्क
आकर्षण को प्रेम समझ कर
ReplyDeleteओ इतराने वाले
आकर्षण के भ्रम में तेरा
सब कुछ खो जाएगा.
लेकिन बंधू आकर्षण प्रेम का प्रवेश द्वार है चाहे फिर वह बौद्धिक हो या भौतिक .बहर सूरत बहुत ही गेय अभिनव सौन्दर्य संसिक्त रचना है ये अरुण कुमार जी निगम .
आकर्षण रुप का...पल दो पल का....बहुत उम्दा!!
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