कफन उठा कर यूँ क्या देखते हो
मुझे आज खुद से जुदा देखते हो.
बदन खाक बनने चला जा रहा है
समझो कि अब तुम हवा देखते हो.
पहलू में था जो , उसे छू न पाए
तुम आज दामन लुटा देखते हो.
दिल आईना है , जरा इसमें झाँको
सपना - सुहाना मिटा देखते हो.
मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो.
मेरी मौत का गम तुमको न होगा
मेरी मौत में फायदा देखते हो.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष – 1980)
बहुत ही दर्दमय .भाव्मई सुंदर शब्दों मैं लिखी शानदार गजल /बहुत बहुत बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visit my blog
www.prernaargal.blogspot.com
बहुत खूब कहा है आपने ...आभार ।
ReplyDeleteमेरी मौत का गम तुमको न होगा
ReplyDeleteमेरी मौत में फायदा देखते हो.
अरुण जी,क्यूँ इतनी तोहमत लगाते है आप?
आपकी सुन्दर गजल ने मन मोह लिया है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आये ,इसके लिए भी आभार.
मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
ReplyDeleteतुम रोज क्यों रास्ता देखते हो
खूबसूरत गज़ल ..
क्या बात है! सारे अश्आर लाज़वाब
ReplyDeleteवाह .....बहुत उम्दा
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति ||
ReplyDeleteबदन खाक बनने चला जा रहा है
ReplyDeleteसमझो कि अब तुम हवा देखते हो....
वाह वाह ... क्या खूब कहा है अरुण भाई...
उम्दा ग़ज़ल...
सादर बधाई...
ek-ek sher behtareen...
ReplyDeletemera pasandeeda...
मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
तुम रोज क्यों रास्ता देखते हो.
बेहद ही अच्छी।
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी लगी।
पहलू में था जो , उसे छू न पाए
ReplyDeleteतुम आज दामन लुटा देखते हो.
...बहुत मर्मस्पर्शी गज़ल. बहुत सुन्दर
har lihaaj se achhee rachna..samajh bhi aayee hai, shabdon ka chayan achha hai
ReplyDeleteApne blog par fir se sajag hone ke prayaas me hoon:
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पहलू में था जो , उसे छू न पाए
ReplyDeleteतुम आज दामन लुटा देखते हो.
ये जीवन का कन्ट्रास्ट है।
बेहतरीन ग़ज़ल।
उम्दा ग़ज़ल....सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल 15 -09 - 2011 को यहाँ भी है
ReplyDelete...नयी पुरानी हलचल में ... आईनों के शहर का वो शख्स था
लाजवाब गज़ल ...दिल में उतर गयी
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति...आभार
ReplyDeleteबहुत गहन भाव युक्त गजल....मन को अंतर तक स्पर्श करती...
ReplyDeleteसादर !!!
मुमकिन नहीं लौटना अब हमारा
ReplyDeleteतुम रोज क्यों रास्ता देखते हो
यह शेर बहुत पसंद आया। शुक्रिया।
aapki gazel me dard ke ehsaas bhare hain.
ReplyDeleteumda gazel.
बदन खाक बनने चला जा रहा है
ReplyDeleteसमझो कि अब तुम हवा देखते हो.
वाह!!