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Saturday, October 23, 2021

पढ़ना मत ऐसे अखबार

 "पढ़ना मत ऐसे अखबार"


राजाओं पर जान निसार

उनको बतलाते अवतार

जिनको पाल रही सरकार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


पाठक को कर दें बीमार

द्वेष बढ़ाने को तैयार

जुमले छापें, छोड़  विचार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


झूठी खबरों की भरमार

नित्य मचाते हाहाकार

हर दिन उगल रहे अंगार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


विज्ञापन की लगी कतार

करते हैं खालिस व्यापार

दिखती नहीं कलम की धार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


धन देती है जो सरकार

उसकी करते जय-जयकार

उग आये ज्यों खरपतवार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


सच को कहते भ्रष्टाचार

और झूठ को शिष्टाचार

बाँट रहे जग को अँधियार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


जिसका मालिक हो मक्कार

नहीं देश से जिसको प्यार

बढ़ा रहे धरती पर भार

पढ़ना मत ऐसे अखबार।


रचनाकार - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग

छत्तीसगढ़

Thursday, October 14, 2021

गजल

 "गजल"


झूठ के दौर में ईमान कहाँ दिखता है

शह्र में भीड़ है इंसान कहाँ दिखता है


फ्लैट उग आये हैं खेतों में कई लाखों के

लहलहाता हुआ अब धान कहाँ दिखता है


लोग खामोश हैं सहके भी सितम राजा के

राज दिल पे करे सुल्तान कहाँ दिखता है


छप रहे रोज ही दीवान गजलकारों के

लफ़्ज़ दिखते तो हैं अरकान कहाँ दिखता है


ज़ुल्फ़ रुखसार की बातों का जमाना तो गया

दिल में उठता हुआ तूफान कहाँ दिखता है


हाथ में जिसके है हथियार सियासत उसकी

देह से वो भला बलवान कहाँ दिखता है


जाल सड़कों का 'अरुण' जब से बिछा गाँवों में

संदली प्यार का खलिहान कहाँ दिखता है


रचनाकार - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़

Thursday, October 7, 2021

महँगाई

 "महँगाई"


पक्ष-विपक्ष के समीकरण में, महँगाई के दो चेहरे हैं 

एक समर्थन में मुस्काता और दूसरे पर पहरे हैं।।


एक राष्ट्र-हित में बतलाता, वहीं दूसरा बहुत त्रस्त है

एक प्रशंसा के पुल बाँधे, दूजे का तो बजट ध्वस्त है।।


रोजगार की बात न पूछो, वह गलियों में भटक रहा है

उसको कल की क्या चिंता है, डीजे धुन पर मटक रहा है।।


उच्च-वर्ग की सजी रसोई, मिडिल क्लास का चौका सूना

कार्पोरेटी रेट बढ़ा कर, कमा रहे हैं हर दिन दूना।।


मध्यम-वर्ग अकेला भोगे, महँगाई की निठुर यातना

कौन यहाँ उसका अपना है, जिसके सम्मुख करे याचना।।


सत्ता-सुख की मदिरा पीकर, मस्त झूमता है सिंहासन

उसे समस्या से क्या लेना, उसको प्यारा केवल शासन।।


अंकुश से है मुक्त तभी तो, सुरसा-सी बढ़ती महँगाई

अंक-गणित, प्रतिशत से बोलो, कभी किसी की हुई भलाई।।


रचनाकार - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर दुर्ग छत्तीसगढ़