"पढ़ना मत ऐसे अखबार"
राजाओं पर जान निसार
उनको बतलाते अवतार
जिनको पाल रही सरकार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
पाठक को कर दें बीमार
द्वेष बढ़ाने को तैयार
जुमले छापें, छोड़ विचार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
झूठी खबरों की भरमार
नित्य मचाते हाहाकार
हर दिन उगल रहे अंगार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
विज्ञापन की लगी कतार
करते हैं खालिस व्यापार
दिखती नहीं कलम की धार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
धन देती है जो सरकार
उसकी करते जय-जयकार
उग आये ज्यों खरपतवार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
सच को कहते भ्रष्टाचार
और झूठ को शिष्टाचार
बाँट रहे जग को अँधियार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
जिसका मालिक हो मक्कार
नहीं देश से जिसको प्यार
बढ़ा रहे धरती पर भार
पढ़ना मत ऐसे अखबार।
रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़