सौगंधों के सूत्र बाँध कर
मत दो जीवन का वरदान
पतझर को पतझर रहने दो
मत दो सावन का वरदान............
अरी बावरी ! सुलग रहा हूँ
फूँको अब जल जाने दो
जल लहराया है नयनों में
मत पोंछो बह जाने दो.
तुम पारस मैं लौह अभागा
मत दो कंचन का वरदान.............
मेरे रोम-रोम में कंटक
वसन तुम्हारा बिंध जायेगा
कोमल तन की तुम शहजादी
रिश्ता कैसे निभ पायेगा.
मैं बबूल का सूखा पौधा
मत दो चंदन का वरदान...............
तुमसे रह कर विलग मीत मैं
मरुथल सा ही तृषित रहूंगा
तुम्हीं नहीं जब सुनने वाली
मैं मन पीड़ा किसे कहूंगा ?
मरुथल को मरुथल रहने दो
मत दो मधुबन का वरदान..........
पागल होकर गीत तुम्हारे
विजन घाटियों में गाऊंगा
रुदन करूंगा – चीखूंगा मैं
और भटक कर मर जाऊंगा.
क्रंदन मेरे भाग लिखा है
मत दो जीवन का वरदान..........
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष- 1977)
यादगार।
ReplyDeleteयह मत दो तुम, वो भी मत दो |
ReplyDeleteआखिर क्या मांगे दीवाने ?
मेरा प्यार नहीं क्यूँ मांगे--
चाहे - बस - दर्दीले - गाने |
तनिक शरारत थोडा नखरा
थोड़ी मस्ती बुरा मानता -
आखिर प्यार किसे कहते हैं--
प्यार के आखिर क्या हैं माने ||
अरुण जी ,
ReplyDelete१९७७ का काव्य ... बहुत खूबसूरत ..हर पंक्ति से शाश्वत प्रेम की महक निकल रही है ... बहुत खूबसूरत रचना
अहा!
ReplyDeleteसरस गेय गीत कम ही मिलते हैं
दो बार गा चुका हूं
फिर आऊंगा।
तुमसे रह कर विलग मीत मैं
ReplyDeleteमरुथल सा ही तृषित रहूंगा
तुम्हीं नहीं जब सुनने वाली
मैं मन पीड़ा किसे कहूंगा ?
वाह अरुण जी कविता का बेहतरीन नमूना लिखा है आपने . आप की काव्य यात्रा निरंतर हृदयिक हो शुभकामनाये.
मेरे रोम-रोम में कंटक
ReplyDeleteवसन तुम्हारा बिंध जायेगा
कोमल तन की तुम शहजादी
रिश्ता कैसे निभ पायेगा
बहुत ही सुंदर गीत का सृजन किया है आपने,
बधाई निगम जी।
राग और समर्पण के भावों से भरी इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें...
ReplyDeleteबढ़िया गीत है। कभी पुरानी नहीं लगेगी।
ReplyDeleteवाह! बहुत भाव प्रणव .... आनंद है अरुण भाई यह गीत...
ReplyDeleteसादर बधाई...
वाह ....बहुत खूब लिखा है
ReplyDeleteबहुत उम्दा!
ReplyDeleteपागल होकर गीत तुम्हारे
ReplyDeleteविजन घाटियों में गाऊंगा
रुदन करूंगा – चीखूंगा मैं
और भटक कर मर जाऊंगा.
क्रंदन मेरे भाग लिखा है
मत दो जीवन का वरदान.......
sunder geet
badhai
rachana
अरूण जी, दिल को छू गये आपके भाव। बधाई।
ReplyDelete------
कभी देखा है ऐसा साँप?
उन्मुक्त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
अरूण जी, शायद आपने ब्लॉग के लिए ज़रूरी चीजें अभी तक नहीं देखीं। यहाँ आपके काम की बहुत सारी चीजें हैं।
ReplyDeleteमैं बबूल का सूखा पौधा
ReplyDeleteमत दो चंदन का वरदान..
सशक्त रचना ,सम्प्रेश्निय्ता से भरपूर .जीवन की रागात्मकता से संसिक्त ,बिखेरती जीवन ऊर्जा .
bahut sunder prem ki bhavnaon main doobaa hua madhur geet .bahut badhaai aapko/
ReplyDeleteआप ब्लोगर्स मीट वीकली (९) के मंच पर पर पधारें /और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/आप हमेशा अच्छी अच्छी रचनाएँ लिखतें रहें यही कामना है /
आप ब्लोगर्स मीट वीकली के मंच पर सादर आमंत्रित हैं /
अरी बावरी ! सुलग रहा हूँ
ReplyDeleteफूँको अब जल जाने दो
जल लहराया है नयनों में
मत पोंछो बह जाने दो.
कविवर आप हमारे ब्लॉग तक आये और सराहा हम तो धन्य हुए ..
आपके लेखन का कोई जवाब नहीं लाजवाब हर लिहाज से ..शब्द ,भाषा .रस ,सहजता ..चिंतन , विचार , मर्म .........क्या कहे ..सारगर्भित ,पुरमानी ..दाद हाज़िर है क़ुबूल करें
kitna pyaara...kitna puraana hokar bhi lagta hai jaise kitna nayaa hai....nayee khushboo, naya ehsaas..behtareen..
ReplyDeleteMere latest post ko yahan padhe:
http://teri-galatfahmi.blogspot.com/2011/09/blog-post_19.html
बहुत ही मधुर गीत ... प्रेम और विरह की पीड़ा अनुपम दृश्य बनाया है आपने ... लाजवाब गीत ...
ReplyDeleteआनन्द आ गया....
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