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Sunday, September 11, 2011

पगडंडी का राही हूँ मैं

चंदन जैसा नहीं मगर मैं ,
महक छोड़ कर जाऊंगा
ख्वाब सजाना चाहोगे तो
पलक छोड़ कर जाऊंगा.

तुम पर लिखे गीत तुम्हीं को
सौंप रहा हूँ, ओ मनमीता !
इन गीतों में अपनी भी इक
झलक छोड़ कर जाऊंगा.

पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
जितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.

एक दिये से प्यार किया है
खौफ न खाना अंधियारों से
बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
चमक छोड़ कर जाऊंगा.

काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
और धरा क्या बँटवारे में
पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.


24 comments:

  1. पंख तुम्हारे - चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा।

    मन पर गहरा असर छोड़ने वाला गीत।

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  2. एक दिये से प्यार किया है
    खौफ न खाना अंधियारों से
    बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
    चमक छोड़ कर जाऊंगा.

    बेहतरीन।

    सादर

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  3. वाह!! आनंद आ गया अरुण भाई...
    सुन्दर, सरस गीत... वाह...
    सादर साधुवाद....

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  4. भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

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  5. चंदन जैसा नहीं मगर मैं ,
    महक छोड़ कर जाऊंगा
    ख्वाब सजाना चाहोगे तो
    पलक छोड़ कर जाऊंगा.

    कुल मिलाकर हर प्रकार से तुम्हारे साथ सहयोग करूँगा. जरुर करूँगा.

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  6. पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा।

    बेहतरीन समर्पण भाव युक्त कविता

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  7. काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
    और धरा क्या बँटवारे में
    पगडंडी का राही हूँ मैं
    सड़क छोड़ कर जाऊंगा.

    सुन्दर और भावपूर्ण गीत ......

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  8. काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
    और धरा क्या बँटवारे में
    पगडंडी का राही हूँ मैं
    सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
    --
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  9. बहुत ही खूबसूरत गीत |

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  10. मन पर गहरा असर छोड़ने वाला गीत। धन्यवाद|

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  11. पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा.
    ... khoobsurat , zindadil khwaahish

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  12. काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
    और धरा क्या बँटवारे में ||

    बढ़िया प्रस्तुति |
    बधाई ||

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  13. बहुत ही खुबसूरत....

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  14. पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा.


    बहुत खूबसूरत भाव संजोये हैं ...

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  15. एक दिये से प्यार किया है
    खौफ न खाना अंधियारों से
    बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
    चमक छोड़ कर जाऊंगा.

    बहुत सुंदर भावों का सम्प्रेषण .....प्रेरणादायक आपका आभार

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  16. सड़क छोड़ कर जाऊंगा "
    बहुत अच्छी कविता है। विशेषकर ये पंक्तियाँ-

    "पगडंडी का राही हूँ मैं
    सड़क छोड़ कर जाऊंगा"

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  17. पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा.
    काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
    और धरा क्या बँटवारे में
    पगडंडी का राही हूँ मैं
    सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
    कोमल भाव की समर्पित रचना भाव सौन्दर्य और नाद लिए गेयता लिए एहसास लिए अपने होने का .

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  18. अग्रिम आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
    आप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
    MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
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  19. एक दिये से प्यार किया है
    खौफ न खाना अंधियारों से
    बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
    चमक छोड़ कर जाऊंगा.
    अरुण जी आपकी यह रचना दिल में धंस गई है। कितना समर्पण है। काश यह मेरा गीत होता!

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  20. पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
    जितना चाहो तुम उड़ना
    ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
    फलक छोड़ कर जाऊंगा.

    bahut sundar rachana, khoobsoorat prastuti.

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  21. प्रवाहमयी गीत....सुन्दर.

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