चंदन जैसा नहीं मगर मैं ,
महक छोड़ कर जाऊंगा
ख्वाब सजाना चाहोगे तो
पलक छोड़ कर जाऊंगा.
तुम पर लिखे गीत तुम्हीं को
सौंप रहा हूँ, ओ मनमीता !
इन गीतों में अपनी भी इक
झलक छोड़ कर जाऊंगा.
पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
जितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.
एक दिये से प्यार किया है
खौफ न खाना अंधियारों से
बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
चमक छोड़ कर जाऊंगा.
काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
और धरा क्या बँटवारे में
पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
पंख तुम्हारे - चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा।
मन पर गहरा असर छोड़ने वाला गीत।
वाह! क्या जज़्बा...
ReplyDeleteआज 11- 09 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDelete...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
एक दिये से प्यार किया है
ReplyDeleteखौफ न खाना अंधियारों से
बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
चमक छोड़ कर जाऊंगा.
बेहतरीन।
सादर
वाह!! आनंद आ गया अरुण भाई...
ReplyDeleteसुन्दर, सरस गीत... वाह...
सादर साधुवाद....
भावुक...सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....
ReplyDeleteचंदन जैसा नहीं मगर मैं ,
ReplyDeleteमहक छोड़ कर जाऊंगा
ख्वाब सजाना चाहोगे तो
पलक छोड़ कर जाऊंगा.
कुल मिलाकर हर प्रकार से तुम्हारे साथ सहयोग करूँगा. जरुर करूँगा.
पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा।
बेहतरीन समर्पण भाव युक्त कविता
काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
ReplyDeleteऔर धरा क्या बँटवारे में
पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
सुन्दर और भावपूर्ण गीत ......
dil ko chhooti sundar bhaavaavyakti.
ReplyDeleteकाँटे मेरे – फूल तुम्हारे
ReplyDeleteऔर धरा क्या बँटवारे में
पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
--
सुन्दर अभिव्यक्ति!
बहुत ही खूबसूरत गीत |
ReplyDeleteमन पर गहरा असर छोड़ने वाला गीत। धन्यवाद|
ReplyDeleteपंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.
... khoobsurat , zindadil khwaahish
काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
ReplyDeleteऔर धरा क्या बँटवारे में ||
बढ़िया प्रस्तुति |
बधाई ||
बहुत ही खुबसूरत....
ReplyDeleteपंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.
बहुत खूबसूरत भाव संजोये हैं ...
एक दिये से प्यार किया है
ReplyDeleteखौफ न खाना अंधियारों से
बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
चमक छोड़ कर जाऊंगा.
बहुत सुंदर भावों का सम्प्रेषण .....प्रेरणादायक आपका आभार
सड़क छोड़ कर जाऊंगा "
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविता है। विशेषकर ये पंक्तियाँ-
"पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा"
पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.
काँटे मेरे – फूल तुम्हारे
और धरा क्या बँटवारे में
पगडंडी का राही हूँ मैं
सड़क छोड़ कर जाऊंगा.
कोमल भाव की समर्पित रचना भाव सौन्दर्य और नाद लिए गेयता लिए एहसास लिए अपने होने का .
अग्रिम आपको हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आज हमारी "मातृ भाषा" का दिन है तो आज हम संकल्प करें की हम हमेशा इसकी मान रखेंगें...
ReplyDeleteआप भी मेरे ब्लाग पर आये और मुझे अपने ब्लागर साथी बनने का मौका दे मुझे ज्वाइन करके या फालो करके आप निचे लिंक में क्लिक करके मेरे ब्लाग्स में पहुच जायेंगे जरुर आये और मेरे रचना पर अपने स्नेह जरुर दर्शाए..
MADHUR VAANI कृपया यहाँ चटका लगाये
MITRA-MADHUR कृपया यहाँ चटका लगाये
BINDAAS_BAATEN कृपया यहाँ चटका लगाये
एक दिये से प्यार किया है
ReplyDeleteखौफ न खाना अंधियारों से
बुझ जाऊंगा मगर मीत मैं
चमक छोड़ कर जाऊंगा.
अरुण जी आपकी यह रचना दिल में धंस गई है। कितना समर्पण है। काश यह मेरा गीत होता!
पंख तुम्हारे – चाह तुम्हारी
ReplyDeleteजितना चाहो तुम उड़ना
ऐ आजाद परिंदे ! मैं तो
फलक छोड़ कर जाऊंगा.
bahut sundar rachana, khoobsoorat prastuti.
प्रवाहमयी गीत....सुन्दर.
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