मैं तुम्हें अंक में लेने को लालायित था
इतने में आ गई मृत्यु, मैं क्या करता !!!
तुम रुष्ठ हुई हो नयनों के अश्रु लखकर
नयन-कटोरे रीते थे , मैं क्या भरता !!!
तुम रचती रही महावर अपने पाँवों में
हाथों में मेंहदी रचे बिना तुम क्या आती
तुमको था ‘सजना’ अतिप्रिय “सजना” से
दर्पण से कुछ कहे बिना तुम क्या आती.
कहता ही रह गया तुम्हें मैं जीवन भर
मन की सुंदरता ही सच्ची सुंदरता !!!
गहनों और परिधानों में इतना खोई
उमर गई कब फिसल , तुम्हें न भान हुआ
मैं सज-धज तैयार हुआ जब जाने को
तब जाकर तुमको जीवन का ज्ञान हुआ.
और प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
तुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष- 1977)
मैं सज-धज तैयार हुआ जब जाने को
ReplyDeleteतब जाकर तुमको जीवन का ज्ञान हुआ.
और प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
तुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
इन पंक्तियों ने नि:शब्द कर दिया है ..भावनाओं का उद्द्वेग जैसे झरना बन फूट पड़ा है ..
उफ़ …………बेहद गहन भावनाओ का समावेश्…………ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा बयाँ कर दिया……………शानदार दिल को छूती प्रस्तुति।
ReplyDeleteऔर प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
ReplyDeleteतुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
वाह, क्या बात है...
सरल शब्दों में प्रभावशाली प्रस्तुति।
भाई जी यह तो रचना का वही साल है
ReplyDeleteजब मैंने कहा था --
री अजन्ते दूर अब तुझसे चला मैं ||
बहुत ही प्रभावी और बेहतरीन रचना ....
ReplyDelete‘मैं क्या करता!!!’ तो लिख ही दिया
ReplyDeleteअब भी क्या करना बाकी है?
कुछ सूझा नहीं कि लिक्खूँ क्या
इस सुन्दर प्रस्तुति के बदले
बस इतना ही कि वाह! वाह!
तुम ही बोलो! मैं क्या करता?...बहुत सुन्दर
बेहद गहन भावनाओ का समावेश्| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteराम-राम!
तुम रचती रही महावर अपने पाँवों में
ReplyDeleteहाथों में मेंहदी रचे बिना तुम क्या आती
तुमको था ‘सजना’ अतिप्रिय “सजना” से
दर्पण से कुछ कहे बिना तुम क्या आती.
इन पंक्तियों में मैं आध्यात्मिक अर्थ खोज रहा हूं। मन के भावों की उत्तम अभिव्यक्ति।
बहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
कहता ही रह गया तुम्हें मैं जीवन भर
ReplyDeleteमन की सुंदरता ही सच्ची सुंदरता !!!aur bahya saundarya me sab khatm ho chala
बेहतरीन प्रस्तुति ।
ReplyDeleteऔर प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
ReplyDeleteतुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता
विरह वेदना के साथ अपने प्रेम के अहसास को बताती सुकोमल संवेदनशील रचना /दिल को छु गई /बहुत बधाई आपको /
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
www.prernaargal.blogspot.com
Quite an emotional creation . Loving it.
ReplyDeleteबेहतरीन गीत अरुण भाई... वाह! सादर....
ReplyDeleteमैं सज-धज तैयार हुआ जब जाने को
ReplyDeleteतब जाकर तुमको जीवन का ज्ञान हुआ.
और प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
तुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
oh..........
नमन है आपको...निशब्द हूँ ...क्या कहूँ..धन्यवाद संगीता स्वरुप जी का हलचल पर इस रचना का लिंक देने का.एक उत्कृष्ट रचना पढ़ने को मिली.
और प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
ReplyDeleteतुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
sara dard samait diya hai in panktiyon me
jabardast lekhan.
गहनों और परिधानों में इतना खोई
ReplyDeleteउमर गई कब फिसल , तुम्हें न भान हुआ
मैं सज-धज तैयार हुआ जब जाने को
तब जाकर तुमको जीवन का ज्ञान हुआ.
और प्रतीक्षा में मैंने जीवन खोया
तुम जो रहती निकट भला मैं क्या मरता !!!
आपकी रचना ने मन बहा दिया....सचमुच जब सब हाथ से छूट जाने का समय आता है तब हाथ में स्थित वास्तु के मूल्य का बोध होता है...
बहुत ही भावपूर्ण ,मनमोहक इस रचना के लिए आपका आभार...
बहुत आनंद आया पढ़कर...
प्रभावी रचना....
ReplyDeleteआतंरिक सुंदरता ही सर्वस्व है...यथार्थ रचना...
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन,गहन ,भावाभिव्यक्ति है...
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