गजल -
सत्य जेल में पड़ा हुआ है
झूठ द्वार पर खड़ा हुआ है।।
बाँट रहा वह किसकी दौलत
कहाँ खजाना गड़ा हुआ है।।
उस दामन का दाग दिखे क्या
जिस पर हीरा जड़ा हुआ है।।
अब उससे उम्मीदें कैसी
वह तो चिकना घड़ा हुआ है।।
पाप कमाई, बाप कमाए
बेटा खाकर बड़ा हुआ है।।
लोकतंत्र का पेड़ अभागा
पत्ता पता झड़ा हुआ है।।
सत्ता का फल दिखता सुंदर
पर भीतर से सड़ा हुआ है।।
नर्म मुलायम दिल बेचारा
ठोकर खाकर कड़ा हुआ है।।
उसे राष्ट्रद्रोही बतला दो
"अरुण" अभी तक अड़ा हुआ है।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़