अल्हड़ लहरों में तेरी चंचलता देखी
गंगाजल में तेरी ही पावनता देखी
जो श्रद्धा तेरी पलकों में झाँकी मैंने
हर मंदिर में श्रद्धा की निर्मलता देखी.
जब भी तेरे केशों को सहला देता हूँ
मानों अपने ही मन को बहला देता हूँ
तेरे अधरों को छूने के बाद ही मैंने
कलियों के अंतस्थल में कोमलता देखी.
तेरी धड़कन का जब भी आभास किया है
सरगम पर कुछ रचने का प्रयास किया है
तेरी श्वासों की महकी सी उष्मा पाकर
अरुण रश्मियों में मैंने शीतलता देखी.
मन कहता है तुम ऐसे ही पास रहोगी
छेड़ोगी ऐसे ही और मृदुहास करोगी
भाव बाँच कर तेरे कजरारे नयनों के
कवि-हृदय में ऐसी ही भावुकता देखी.
छलक-छलक जाती हैं मेरी ये पलकें
तुझमें देखी है जबसे अतीत की झलकें
तेरे ज्योतिर्मय मन में जब से डूबा हूँ
तब से हर प्रात: में उज्जवलता देखी.
अपने जीवन से मैं कब का हार चुका था
जीवन की आशाओं को मैं वार चुका था
प्रेमामृत का जब से तूने दान दिया है
अपने ही मृत जीवन में उत्सुकता देखी.
कुंठाओं की देहरी से मैं भाग चुका हूँ
भोर हुई है जीवन की मैं जाग चुका हूँ
अपने को बड़भागी मैंने मान लिया है
तेरे दो नयनों में मैंने ममता देखी.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग
छत्तीसगढ़.
(रचना वर्ष- 1980)
इतनी सुन्दर भावाभिव्यक्ति पढने के बाद प्रशंसा करने के लिए शब्द तिरोहित हो गए हैं ...
ReplyDeleteकुंठाओं की देहरी से मैं भाग चुका हूँ
ReplyDeleteभोर हुई है जीवन की मैं जाग चुका हूँ
अपने को बड़भागी मैंने मान लिया है
तेरे दो नयनों में मैंने ममता देखी.
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बहुत सुन्दर प्रणयगीत रचा है आपने!
वाह ……………मन के कोमल भावो का कितना सुन्दर चित्रण किया है कि मन मे ही उतर गये।
ReplyDeleteअपने ही मृत जीवन में उत्सुकता देखी ||
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति पर बधाई ||
बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति.
ReplyDeleteयह छन्दबद्ध रचना धीरे-धीरे मन के भावों को खोलती चली जाती है।
ReplyDeletesundar abhivaykti...
ReplyDeleteसुन्दर प्रणयगीत .
ReplyDeleteअपने ही मृत जीवन में उत्सुकता देखी.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लिखा है आपने,
एक बात कहना चाहूँगा, की आप लाल जैसे bright color न उपयोग करें क्योकि ये color आँखों को थोडा सा hurt करते हैं, और जो भी color आपने use किये हैं वो बहुत सुन्दर हैं और बहुत अच्छे हैं.
शुभकामनाएं
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तेरी धड़कन का जब भी आभास किया है
ReplyDeleteसरगम पर कुछ रचने का प्रयास किया है
तेरी श्वासों की महकी सी उष्मा पाकर
अरुण रश्मियों में मैंने शीतलता देखी.
संयोग शृंगार का अनुपम उदाहरण।
बहुत अच्छा लिखा है निगम जी।
सुंदर गीत
ReplyDeleteजो श्रद्धा तेरी पलकों में झाँकी मैंने
ReplyDeleteहर मंदिर में श्रद्धा की निर्मलता देखी.....
अरुण भाई.... बड़े सुन्दर भाव भरते हैं आप अपनी गीतों में...
आनंद आ गया...
सादर...
बेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबेहतरीन , लाज़वाब अन्तिम पंक्ति में गीत का निचोड़ बेमिसाल है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत लिखा है .....
ReplyDeleteएक उत्कृष्ट रचना....
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