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Tuesday, February 11, 2020

"प्रॉमिज़-डे" का "प्रॉमिज़"

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"प्रॉमिज़-डे" का "प्रॉमिज़"
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"प्रॉमिज़-डे" पर "डे" का "प्रॉमिज़"
"लंच-ब्रेक" में "ब्रेक" हुआ।
प्यार-मोहब्बत की गाड़ी का, 
"फ्रण्ट-ग्लास" ही "क्रेक" हुआ।।

"एक्सीडेंट" भी "एक्सीलेन्ट" था,
आशिक़, शायर बन बैठा।
"प्रेम-फरारी" का बेचारा,
"पंचर-टायर" बन बैठा।।

"हनी सिंग" को गाने वाला
अब "सहगल" को गाता है।
आँखों में "रैनी-सीजन" है
यदा-कदा मुस्काता है।।

"वेलेन्टाइन" के "प्रॉमिज़" से
"प्रॉमिज़-पेस्ट" ही अच्छा है।
"दाँत नहीं टूटेंगे" - "प्रॉमिज़",
यही मित्र इक सच्चा है।।

"चमक उठेंगे दाँत" - "गारण्टी"
जीवन भर मुस्काओगे।
"प्रॉमिज़" करो वेलेंटाइन के,
चक्कर में ना आओगे।।

रचनाकार - अरुण कुमार निगम

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Friday, February 7, 2020

रोज़ डे 07 फरवरी

ROSE DAY पर एक रचना

मेरे गीतों में गुलाबों की महक पाओगे
रोज़ डे तुम तो मनाना ही भूल जाओगे ।

खार की कुछ तो चुभन हाँ ! तुम्हें सहनी होगी
बाद में तुम भी गुलाबों से खिलखिलाओगे ।

साथ पूरब के रहो आसमाँ पे दमकोगे
राह पश्चिम की धरे, तय है डूब जाओगे ।

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग

(हमारे आँगन का गुलाब)

Sunday, February 2, 2020

वासंती फरवरी


कम-उम्र बदन से छरहरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

शायर कवियों का दिल लेकर
शब्दों का मलयानिल लेकर
गाती है करमा ब्याह-गीत
पंथी पंडवानी भरथरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

गुल में गुलाब का दिवस लिए
इक प्रेम-दिवस भी सरस लिए
है पर्यावरण प्रदूषित पर
बातें इसकी हैं मदभरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

इसकी भी अपनी हस्ती है
इसमें मेलों की मस्ती है
नमकीन मधुर कुछ खटमीठी
थोड़ी तीखी कुछ चरपरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

यह बारह भाई-बहनों में
इकलौती सजती गहनों में
यूँ आती यूँ चल देती है
बस नजर डाल कर सरसरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

सुख शेष कहाँ अब जीवन में
घुट रही साँस वातायन में
कुछ राहत सी दे जाती है
बन स्वप्न-लोक की जलपरी
लाई वसंत फिर फरवरी।

रचनाकार - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग छत्तीसगढ़