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Thursday, August 17, 2023

एक ग़ज़ल

 एक ग़ज़ल :


सदन को यूँ सँभाला जा रहा है 

हर इक मुद्दे को टाला जा रहा है


रक़ीबों ने किया है जुर्म फिर भी

हमारा नाम उछाला जा रहा है


बचेगा किस तरह दंगों का ज़ख़्मी

नमक घावों पे डाला जा रहा है


सभा में भीड़ है दुर्योधनों की

युधिष्ठिर को निकाला जा रहा है


इधर गायें भटकती हैं सड़क पर

उधर कुत्तों को पाला जा रहा है


सुबह अखबार में खबरों को पढ़ के 

हलक़ से क्या निवाला जा रहा है?


लिखे अशआर क्या दो-चार सच पर

"अरुण" का घर खँगाला जा रहा है


- अरुण कुमार निगम