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Wednesday, September 19, 2012

गुरु चरणों में समर्पित


छंद - दुर्मिल सवैया

।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ।।ऽ ( सगण यानि सलगा X 8 )
 
मदमस्त हुये अलमस्त हुये,रसपान किये रस सौरभ का |
धरती हरषी बरखा बरसी, रँग लाल गुलाल हुआ नभ का ||
मन झूम उठा तन झूम उठा, पुरवा बहकी सुन छंदन को |
दुइ हाथ अबीर गुलाल लिये,मन भाग चला अभिनंदन को ||

गुरुदेव कहाँ गुरुदेव कहाँ , अँखियाँ तरसीं हरि दर्शन को |
इत मंदिर में उत जंगल में,फिर झाँक उठी मन दर्पन को ||
गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
हम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)

18 comments:

  1. बहुत ही श्रेष्ठ गुरु वंदना..
    गुरु महिमा को व्यक्त करती..
    अति उत्तम रचना..
    :-)

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  2. बहुत बढ़िया रचना |
    शुभकामनायें भाई जी ||

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  3. गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
    हम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||वाह बहुत ही सुन्दर भाव..

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  4. गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
    हम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||...सार्थक भाव में ही गुरु है,ईश्वर है

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  5. मन झूम उठा तन झूम उठा, पुरवा बहकी सुन छंदन को |
    दुइ हाथ अबीर गुलाल लिये,मन भाग चला अभिनंदन को ..

    वाह अरुण जी ... मन झूम झूम उठा इन लाजवाब छंदों को पढ़ के ... या सच कहूं तो गा गा के ... बेहतरीन .... लाजवाब ....

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  6. वाह वाह,,,,भाई मान गए अरुण जी,,,

    रचना करते सभी है,गये आपको मान
    रचनाओं से आपकी,मिलता हमको ज्ञान,,,,,,

    RECENT P0ST फिर मिलने का

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  7. बहुत सुन्दर भावपूर्ण गुरु वंदना ...

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  8. वाह मज़ा आ गया आज आपकी यह रचना पढ़कर बहुत ही सुंदर काव्य अरुण जी बेहतरीन रचना...

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  9. सुंदर है दुर्मिल सवैया, श्रेष्ठ गुरु-ज्ञान मिला
    निर्मल मन के अन्दर,प्रभु को है मान मिला

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  10. वाह वाह अरुण जी अद्भुत है
    बार बार पढ़ने को मन करता है
    स्तुति में प्रयोग करने लायक रचना
    भाई अरुण इस अजर अमर काव्य को नमन

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  11. बहुत सुन्दर भावपूर्ण

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  12. सुंदर भावपूर्ण गुरु वंदना । इस सुंदर रचना के लिये आपका आभार भी और आपको बधाई भी ।

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  13. वाह! अद्भुत और भावपूर्ण गुरु वन्दन...

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  14. .

    प्रियवर अरुण कुमार निगम जी

    कुछ समय पश्चात् आना हुआ है आपके यहां ।
    दोहे भी पढ़े… कुंडलियां भी…
    लेकिन यहां आ'कर तो भावविभोर हो गया …

    गुरुदेव कहाँ गुरुदेव कहाँ , अँखियाँ तरसीं हरि दर्शन को |
    इत मंदिर में उत जंगल में,फिर झाँक उठीं मन दर्पन को ||


    आहाऽऽहाऽऽ… जिसका मन गुरुदेव के प्रति समर्पित न हो , वहां भी श्रद्धा भाव जाग्रत हो जाए …

    बहुत सुंदर रचना !

    सादर शुभकामनाओं सहित…

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