‘रेणु’ से ‘दलित’ तक
फणीश्वर नाथ रेणु (चित्र गूगल से साभार) कोदूराम 'दलित'
-पं. दानेश्वर शर्मा
एक था ‘रेणु’ और दूसरा था ‘दलित’ | दोनों का सम्बंध जमीन से
था | रेणु का जन्म बिहार के पूर्णिया जिले के औराही हिंगना गाँव में हुआ | दलित
का जन्म छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के अर्जुंदा टिकरी गाँव में हुआ | दोनों ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े
| रेणु कथाकार थे और दलित कवि | दोनों साहित्यकार थे | रेणु का जन्म 4 मार्च को
हुआ और दलित का जन्म 5 मार्च को | बसंत दोनों की प्रकृति में था | वैवाहिक जीवन भी
दोनों का एक ही प्रकार का था | रेणु कथा साहित्य में लोक भाषा के शब्दों का सटीक
प्रयोग करते थे और दलित लोक भाषा के अधिकारी कवि थे |
4 मार्च को जब भिलाई में
अंतरंग साहित्य समिति ने रेणु श्रद्धास्मरण का आयोजन किया, तब दलित जी का भी स्मरण
किया गया | शब्दानुशासनम् के रचनाकार ने जब लोकेवेदे च कहा तब सम्भवत: यह ध्यान
में रहा होगा कि लोक शब्द वेद के पहले आ गया है | लोक की यह प्राथमिकता श्लाघनीय
है क्योंकि लोक जीवन स्वस्थ जीवन है | लोक संस्कृति भारतीय संस्कृति है तथा लोक
साहित्य शाश्वत साहित्य है |
लोक जीवन सरल ,
पवित्र तथा निश्छल होता है | रेणु के अनुभव संसार पर अपना आलेख पढ़ते हुए वेद
प्रकाश दास ने पिछले दिनों रेणु तथा नागार्जुन के अंतरंग सम्बंधों की चर्चा की |
बड़ा रोचक संस्मरण है |
नागार्जुन जी रेणु जी के घर कई बार गये लेकिन संयोगवश रेणु जी
उस समय घर से बाहर होते थे | एक दिन बमुश्किल भेंट हो गई तो नागार्जुन जी बरस पड़े –
कहाँ चले जाते हो जी ? कई बार आ चुका, लेकिन अब भेंट हो रही है | रेणु जी ने चुटकी
ली – तुम मिलने के लायक दिखते कहाँ हो ? अपनी हालत देखो | मैले कुचैले कपड़े और
अस्त व्यस्त हुलिया | नागार्जुन जी ने कहा साहित्यकार ऐसा ही होता है | रेणु जी ने
कहा नहीं साहित्यकार ऐसा नहीं होता | मैं अभी बताता हूँ कि साहित्यकार कैसा होता
है | यह कह कर और नागार्जुन जी को बैठा कर रेणु जी भीतर चले गये | थोड़ी देर बाद,
शानदार वस्त्रों से सजधज कर ,बालों को करीने से सँवार कर और इत्र फुलेल की खुशबू
से महकते हुए नागार्जुन जी के पास आकर खड़े हो गये और बोले देखो साहित्यकार ऐसा
होता है | फिर दोनों के ठहाके |
दलित जी भी साफ सुथरे व्यक्ति थे | उन्हें किसी तरह की लाग
लपेट पसंद नहीं थी | सच बात कहने में वे थोड़ा भी नहीं हिचकते थे | इत्र के भी
शौकीन थे | एक बार नागपुर आकाशवाणी केंद्र द्वारा आयोजित कवि गोष्ठी में अन्य कवियों
के अतिरिक्त दलित जी, मैं और बिलासपुर के स्व. सरयू प्रसाद त्रिपाठी मधुकर भी
आमंत्रित थे | हम तीनों मोर भवन ( तत्कालीन हिंदी साहित्य सम्मेलन का कार्यालय भवन
) से आकाशवाणी जाने के लिए निकले | रास्ते में लिबर्टी चौक पर स्थित एक सेलून में
दलित जी ने दाढ़ी बनवाई और इत्र लगाने के बाद आकाशवाणी केंद्र की ओर रवाना हुए | इस
पर मधुकर जी ने चुटकी ली – रेडियो में केवल आवाज सुनाई पड़ती है ,दलित जी | चेहरा
मोहरा नहीं दिखता | दलित जी ने तुरंत जवाब दिया – का होगे महाराज ? आदमी ला साफ
सुथरा रहना चाही अउ साफ सुथरा दिखना घलो
चाही | एमे मन परसन रइथे |
आजादी के लिए लड़ी गई लड़ाई में रेणु जी और दलित जी का योगदान
है | रेणु जी ने जेल की यातना सही | दलित जी जेल नहीं गये किंतु अनेक देशभक्त तैयार
किए | उन्होंने छात्रों में राष्ट्रीयता कूट-कूट कर भरी | अंग्रेजी शासन के खिलाफ
उन दिनों एक शब्द बोलना भी अपराध था किंतु दलित जी सांस्कृतिक कार्यक्रमों के
बहाने वातावरण बनाते रहे | उदाहरण के लिए अपनी कक्षा के छात्रों को वे राउत नाचा
सिखाते थे और परम्परागत राउत दोहों के बदले छात्रों को राष्ट्रीय दोहा लिख लिख कर
देते थे | दोहे इस प्रकार होते थे -
गांधी जी के छेरी भैया
दिन भर में-में नरियाय रे
ओकर दूध ला पी के भइया
बुढ़वा जवान हो जाय रे ||
सत्य अहिंसा के राम-बान
गांधी जी मारिस तान-तान |
रेणु और दलित दोनों ने 56 वर्ष की जिंदगी जी | पता नहीं,
दोनों में इतना साम्य क्यों था ?
[छत्तीसगढ़ के किसी समाचार पत्र में प्रकाशित वरिष्ठ साहित्यकार
पं.दानेश्वर शर्मा जी का यह लेख उन्होंने ही मुझे दिया था | कतरन में अखबार का नाम
नहीं दिख पाया है. सम्बंधित समाचार पत्र के प्रति आभार |]
*आज छत्तीसगढ़ के जनकवि स्व.कोदूराम दलित की 45 वीं पुण्यतिथि*
अरुण निगम के पिताजी, श्रेष्ठ दलित कविराज |
ReplyDeleteउनकी कविता कुंडली, पढता रहा समाज |
पढता रहा समाज, आज भी हैं प्रासंगिक |
देशभक्ति के मन्त्र, गाँव पर लिख सर्वाधिक |
छत्तिसगढ़ का प्रांत, आज छू रहा ऊंचाई |
जय जय जय कवि दलित, बड़ी आभार बधाई ||
सादर नमन ||
Deletebahut sundar adarniy ravikar ji waah
Deleteअच्छी तुलना है। इसी बहाने दलित जी से परिचय हुआ।
ReplyDeleteसाहित्य तभी समाज का दर्पण है जब वह लोकभावना को प्रतिबिंबित करे। हमारे समय को भी ऐसे सहृदयों की दरक़ार है। उनका स्मरण शायद इस ओर प्रेरित कर सके।
दोनों साहित्यकारों का जीवन परिचय कराने के लिये,,आभार
ReplyDeleteअद्भुत साम्य ... इस परिचय के लिए आभार
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
दोनो साहित्यकारो से परिचय करवाने के लिए आभार.
ReplyDeleteरेणु जी के बारे मे तो पता था दलित जी से मिलवाने का शुक्रिया . और दोनों के बीच के साम्य
ReplyDeleteकमाल का था ।
निगम जी संगीत में भी लोक संगीत पहले आया है शास्त्र बद्ध बाद में हुआ है .संत कवि सारे जन कवि ही तो थे लोक के जन जन के कवि थे .फनेश्वर नाथ रेणु लिखे "मैला अंचल "और रहे सजे धजे .
ReplyDeleteदलित जी की रचनाएं आपके ब्लॉग पे जब तक पढ़ें को मिल जातीं हैं .बढ़िया पोस्ट लगाईं है लोक साहित्य की छींट लिए.
अरुण भाई आपने आदरणीय दानेश्वर शर्मा जी से प्राप्त जानकारी को हम सब के साथ बांटने के लिए आभार| बहुत बढ़िया जानकारी दी|
ReplyDeleteआदरणीय कोदूराम जी दलित जी के नाम से छत्तीसगढ़ में नवाँगढ़ में कालेज भी है
आदरणीय कोदूराम जी दलित के द्वारा ही सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ी शब्दकोष के निर्माण के दिशा में
काम शुरू किया गया था मुझे छ.ग. के वरिष्ठ साहित्यकारों से यह जानकारी मिली थी
उनकी कविता में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने समाज सुधार की दिशा में बहुत
बढ़िया काम किया है
उन्होंने हर क्षेत्र पर लिखा है उनकी लेखनी अद्भुत थी
उनकी पुण्य तिथि पर बहुत बढ़िया प्रस्तुति के लिए धन्यवाद
हम ईश्वर से यह कामना करते है कि भगवान उन्हें अपने में समाहित रखे एवं उनके परिवार
के लोगों को सदैव सुख शांति प्रदान करे|
फणीश्वर नाथ रेणु और जन संत कवि कोदूराम जी से आपने रु -बा -रु करवाया ,उनका व्यक्तित्व और कृतित्व समझाया .आभार .आपकी काव्यात्मक टिपण्णी मूल पोस्ट और और भी गेय बनाके जन मन तक पहुंचा रही है .आभार .
ReplyDeleteसोया घोड़े बेचकर ,जाग मुसाफिर जाग |
चुरा गठरिया हाय रे,चोर जाय ना भाग ||
मेरी निद्रा तुझे मिले,ऐसा कर दे राम |
मैं जागूँ सो जाय तू , निपटें मेरे काम ||
नींद न आये रात भर , लगा प्रेम का रोग |
दिल सचमुच खो जाय गर,छोड़ा ना हठयोग ||
गीत गज़ल में नींद का,जैसा करें प्रयोग |
किंतु नींद भरपूर लें, और भगायें रोग ||
ram ram bhai
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शुक्रवार, 5 अक्तूबर 2012
चील की गुजरात यात्रा