कुण्डलिया 1. – “ अम्बर ”
आगे तीनों लोक के , अम्बर का विस्तार
मंदाकिनियाँ हैं कई , धारे अरुण हजार
धारे अरुण हजार , ऋषि गुनी कहे
अनंता
अम्बर का विस्तार , जान पाये नहि संता
कितने ही ब्रम्हाण्ड
, सतत हैं दौड़े भागे
अम्बर का विस्तार , तीन लोकों के आगे |
कुण्डलिया 2. – “ रवि
“
जलना रवि का धर्म है , लेकिन यह
सत्कर्म
संचालित है सृष्टि में
, इससे जीवन
मर्म
इससे जीवन मर्म
, करे जग को
आलोकित
वन जन जंतु
जहान , इसी से हैं स्पंदित
सिर्फ दृष्टि भ्रम एक, अरुण का उगना ढलना
लेकिन यह सत्कर्म , धर्म है रवि का जलना |
[कुण्डलिया छंद – इसमें
छ: पंक्तियाँ होती हैं . प्रथम शब्द ही अंतिम शब्द होता है. शुरु की दो पंक्तियाँ दोहा
होती हैं अर्थात 13 ,11 मात्राएँ .अंत में एक गुरु और एक लघु.
अंतिम चार पंक्तियाँ रोला होती हैं अर्थात 11 ,13 मात्राएँ.
दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है .]
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
कुण्डलिया छंद,ब्लॉग पर बहुत ही कम पढ़ने को मिलती है..ऊपर से रचना धर्म के बारे में जानकारी..पोस्ट बहुत अच्छी लगी..आभार अरुण जी..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
ReplyDeleteएक सफल प्रयास- प्रशंसनीय
ReplyDeleteकुण्डलिया छंद के माध्यम से अंबर और रवि को बखूबी समेटा है ... सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजलना रवि का धर्म है , लेकिन यह सत्कर्म
ReplyDeleteसंचालित है सृष्टि में , इससे जीवन मर्म
इससे जीवन मर्म , करे जग को आलोकित
वन जन जंतु जहान , इसी से हैं स्पंदित ..
बहुत खूब अरुण जी ... आपके नाम को भी सार्थक करती है ये कुंडली आज तो ...
लाजवाब भाषा संसार और भण्डार ...
सिर्फ दृष्टि भ्रम एक, अरुण का उगना ढलना
ReplyDeleteलेकिन यह सत्कर्म , धर्म है रवि का जलना
.....बेहतरीन प्रशंसनीय प्रस्तुति
उत्कृष्ट कुण्डलियों के साथ साथ शब्दों का सटीक चयन प्रशंसनीय है,,,,
ReplyDeleteकुण्डलिया छंद की मात्राओं जानकारी देने के लिये आभार,,,,,,,
आगे तीनों लोक के , अम्बर का विस्तार
ReplyDeleteमंदाकिनियाँ हैं कई , धारे अरुण हजार
धारे अरुण हजार , ऋषि गुनी कहे अनंता
अम्बर का विस्तार , जान पाये नहि संता
कितने ही ब्रम्हाण्ड , सतत हैं दौड़े भागे
अम्बर का विस्तार , तीनों लोक के आगे |भाई साहब तीनों लोक के आगे में लय टूटी है -"तीन लोकों के आगे "ज्यादा सटीक बैठता है या फिर और भी सटीक रहता -"लोक तीनों के आगे ."गेयता की दृष्टि से बाकी हम तो छंदों के मात्रों के गणित से ना -वाकिफ हैं ,गा लेतें हैं शौकिया सो गाके देखा तो लय भंग हुई .
ram ram bhai
मंगलवार, 11 सितम्बर 2012
देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने
आभार, सचमुच लय बाधित हो रही है, मूल रचना में सुधार कर रहा हूँ.
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ReplyDeleteबहुत खा लिए कोयले अब ,
कुछ तो ठंडा हो लो जी .
वोटों की गिनती छोडो ,
राज धरम कुछ तौलो जी .
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 13-09 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....शब्द रह ज्ञे अनकहे .
आदरणीय अरुण जी
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना प्रस्तुत किया है आपने
भाई इन दो कुंडली से आपने बहुत से सवालों
को सुलझा दिया है आपकी इसी अदा के तो हम कायल है
सुन्दर जानकारी के लिए हार्दिक आभार
सुन्दर निरूपण !
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर जानकारी देती कुण्डलियाँ |बहुत अच्छी लगीं यह रचना |
ReplyDeleteआशा