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Tuesday, September 4, 2012

शिक्षक दिवस पर विचारणीय.........



सम्बोधन !!!!!

क्या यह यूरोप का शहर है दोस्तों  ?
हर शाला में मैडमऔर सरहै दोस्तों
गुरुजीका सम्बोधन कब, क्यों खो गया
खो जाये ना संस्कृति डर है दोस्तों.

गुरुमें श्रद्धा थी , आदर- सम्मान था
गुरु थे आगे फिर पीछे भगवान था
सरका सम्बोधन बेअसर है दोस्तों.....

मैडमआई और बहन जीखो गई
पावन रिश्ते का सम्बोधन धो गई
पश्चिमी संस्कृति का असर है दोस्तों.......

इस भारत में बच्चा गुरुकुल जाता था
गुरु-शिष्य का पिता-पुत्र सा नाता था
अब यह नाता आता कहीं नजर है दोस्तों......

गुरु के आगे राजा शीश नवाते थे
राज-समस्या को गुरु ही सुलझाते थे
अब राजा के सम्मुख क्या कदर है दोस्तों.......

सरको नैतिक शिक्षा पर बल देना होगा
मैडमको ममता का आँचल देना होगा
आँख खुले तो समझो नई सहर है दोस्तों.........

गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा
हर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा
शिक्षक का गुरुकुल ही तो घर है दोस्तों.............

(गत वर्ष इसी ब्लॉग पर पोस्ट की गई रचना पुन: प्रस्तुत)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर ,जबलपुर (म.प्र.)

16 comments:

  1. गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु की संस्कृति की महिमा अवश्य बनी रहनी चाहिए . अति सुन्दर रचना..

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  2. सच है...न पहले से गुरु रहे न शिष्य....
    सुन्दर रचना.

    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं.
    सादर
    अनु

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  3. पूरी तरह से सहमत


    सादर

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  4. सच कितना कुछ बदल गया है हमारे देखते-देखते ..
    बदले हुए परिद्रश्य की चिंतनशील प्रस्तुति के लिए आभार

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  5. पिताजी को डैडी, माँ को मम्मी,
    इंग्लिश के आगे हिंदी निक्कमी!
    बहन पुकारा तो मुह तोप जैसा,
    मैडम पुकारा चमत्कार है कैसा!
    चेहरा खिलकर कमल देखता हूँ
    गुलामी का अभी असर देखता हूँ,,,,,

    शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं,,,,,,

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  6. सच कहा है अरुण जी ... वैसे भी सर मेडम का अस्त तो अध्यापक अध्यापिका होता है ... गुरु नहीं ... गुरु का स्थान अपने भारत देश में ही है ... जो अब खोता जा रहा है ...

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    1. वैसे भी सर मेडम का अस्त तो अध्यापक अध्यापिका होता है ... गुरु नहीं ..

      आदरणीय नासवा जी, आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ . भाई साहब, हम तो प्राइमरी स्कूल में पढ़े हैं और पाँचवी तक गुरूजी और बहन जी शब्द से ही संबोधित करते थे .अभी भी ग्रामीण शालाओं में यही संबोधन चलता है.संबोधन के अनुरूप ही मन में भाव उत्पन्न होते हैं. जब किसी देवी के सामने प्रार्थना करते हैं तो हे माँ !!! ही कहते हैं, हे मम्मी या हे माम का संबोधन मन में या अधरों पर नहीं आता. मैंने इसी "संबोधन" के सम्बन्ध में यह कविता लिखी है.

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  7. “गुरु” में श्रद्धा थी , आदर- सम्मान था
    गुरु थे आगे फिर पीछे भगवान था
    “सर” का सम्बोधन बेअसर है दोस्तों..... बहुत सही

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  8. सत्यता बताती रचना...
    शिक्षक दिवस की शुभकामनाए...
    :-)

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  9. अध्यापक का सबसे ज्यादा भारत में सम्मान है।
    गोविन्द तक पहुँचाने वाला गुरू प्रथम सोपान है।।

    गुरू ज्ञान का शक्ति पुंज है,
    गुरू ही करुणा का निधान है,
    विद्याओं का यह निकुंज है,
    सबल राष्ट्र का महाप्राण है,
    कंचन सा कर देने वाला गुरू पारस पाषाण है।

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  10. “मैडम” आई और “बहन जी” खो गई
    पावन रिश्ते का सम्बोधन धो गई
    पश्चिमी संस्कृति का असर है दोस्तों.......

    सत्य को उकेरती रचना

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  11. गुरु की खोई महिमा को लौटाना होगा
    हर शाला को गुरुकुल पुन: बनाना होगा
    शिक्षक का गुरुकुल ही तो घर है दोस्तों..

    bahut sundar..

    .

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  12. बधाई....सच्चाई से रूबरू कराती आपकी सुंदर
    रचना !

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  13. सर बेअसर है ..... सटीक ॥ विचारणीय रचना

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  14. न रहे वैसे गुरू और न वैसे शिष्य
    हिंदी संस्कृत भूत भई, अंग्रेजी में भविष्य ।

    समाज में जब चलती है इसी की
    शाला अलग तो नही, वहीं से है सीखी ।

    घर को सुधारो पहले मम्मी को माँ बनाओ
    डैडी को पिताजी, किचन को रसोई, जाओ ।

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  15. बहुत सुन्दर..यथार्थ से परिभाषित कराती रचना..!!

    ...

    "पर क्या कोई सच में सुनने वाला है..दोस्तों..
    करें समर्पित..कहाँ ऐसा भाव दोस्तों..!!

    ...

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