[दोहा – प्रथम और तृतीय (विषम) चरणों में 13
मात्राएँ. द्वितीय और चतुर्थ (सम) चरणों में
11 मात्राएँ . प्रत्येक दल में 24 मात्राएँ. अंत में एक गुरु ,एक लघु.]
मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
महक मिटे ना
पुष्प की , चाहे जाये सूख |
अक्षर -अक्षर चुन सदा , शब्द गठरिया बाँध
राह दिखाये व्याकरण ,भाव लकुठिया काँध |
अलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
बिन प्रवाह कविता कहाँ
गीत बिना गुंजार |
खानपान जीवित
रखे , अधर रचाये
पान
जहाँ डूब कान्हा मिले
, ढूँढू वह रस खान |
दीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य
ज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
बहुत बढ़िया अरुण भाई जी ||
ReplyDeleteशुभ कामनाएं ||
सभी दोहे उत्कृष्ट -
Deleteपहले दोहे को आज के सन्दर्भ में यूँ संशोधित करना चाहूँगा ।
माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह ।
देते "कल-मक्कार" को, सुन प्रशस्ति नरनाह ।1।
आभार ।।
अच्छे और सुन्दर भाव लिए दोहे
ReplyDeleteबहुत बढ़िया अरुण जी ...आभार
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक दोहे...
ReplyDeleteअलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
ReplyDeleteबिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार |
bahut hi badhiyaa
वाह भई अरूण जी
ReplyDeleteदीपक पलभर जल बुझे,नित्य जले आदित्य
ReplyDeleteज्योतिर्मय जग को करे,कालजयी साहित्य |
Awesome !
.
badhiya dohe ...bina bhav aur pravaah ke to sab soona hi lagta hai...vyakaran char chand laga deta hai...
ReplyDeleteवाह!
ReplyDeleteआपकी इस ख़ूबसूरत प्रविष्टि को कल दिनांक 24-09-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-1012 पर लिंक किया जा रहा है। सादर सूचनार्थ
कल 24/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
वाह वाह अरुण भाई
ReplyDeleteआपने काव्य के सृजन पर बहुत सही बात कही है
कुछ भी कह देना या लिख देना कविता नहीं हो सकती केवल आभास दे सकती है
पान अधरों को कुछ समय के लिए रच सकता है परन्तु पान की लाली छणिक है
क्या बात है मित्र मन गद गद हुवा साथ ही आपके द्वारा रचित दोहे और उनकी
जानकारी तारीफे काबिल है
ReplyDeleteअलंकार रस छंद के , बिना कहाँ रस-धार
बिन प्रवाह कविता कहाँ गीत बिना गुंजार |
गेयता और प्रवाह और रसधार ,अर्थ बोध से लबरेज़ सार्थक दोहे कम और नपे तुले शब्दों में सब कह गए .पूरा भाव अभिव्यक्त हुआ
ब्लॉग जगत के केशव दास हैं निगम साहब अरुण .
सूर सूर तुलसी शशि ,उड़ीगन केशवदास ,
अद्य कवि खद्योत सम जंह तंह करत प्रकाश ..
मान और सम्मान की,नहीं कलम को भूख
ReplyDeleteमहक मिटे ना पुष्प की , चाहे जाये सूख |...वाह
सच कहो तो अरुण जी यही साहित्य है जो कालजयी साहित्य होता है ...
ReplyDeleteबहुत आनद आया ... लाजवाब बेहतरीन काव्य सृजन ...
कालजयी साहित्य..बहुत ही सुन्दर लगी.
ReplyDeleteवाह सर||
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहे...
बेहतरीन...
:-)
एक से बढ़कर एक सारगर्भित लाजबाब दोहे,,,,,वाह,,,
ReplyDeleteRECENT POST समय ठहर उस क्षण,है जाता,
धार तेज हो कलम की , खुद ही पाये मान
ReplyDeleteसूखे फूल की महक को , तू कस्तूरी जान ।
सभी दोहे एक से बढ़ कर एक .... बहुत सुंदर
मेरी टिप्पणी को स्पैम से आज़ाद कीजिये
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