छंद - दुर्मिल सवैया
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)
धरती हरषी बरखा बरसी, रँग लाल गुलाल हुआ नभ का ||
मन झूम उठा तन झूम उठा, पुरवा बहकी सुन छंदन को |
दुइ हाथ अबीर गुलाल लिये,मन भाग चला अभिनंदन को ||
गुरुदेव कहाँ गुरुदेव कहाँ , अँखियाँ तरसीं हरि दर्शन को |
इत मंदिर में उत जंगल में,फिर झाँक उठी मन दर्पन को ||
गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
हम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (म.प्र.)
बहुत ही श्रेष्ठ गुरु वंदना..
ReplyDeleteगुरु महिमा को व्यक्त करती..
अति उत्तम रचना..
:-)
बहुत बढ़िया रचना |
ReplyDeleteशुभकामनायें भाई जी ||
गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
ReplyDeleteहम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||वाह बहुत ही सुन्दर भाव..
गुरुदेव मिले मन फूल खिले,जब ध्यान किया तब ज्ञान मिला |
ReplyDeleteहम जान गये पहचान गये, गुरु रूप हमें भगवान मिला ||...सार्थक भाव में ही गुरु है,ईश्वर है
मन झूम उठा तन झूम उठा, पुरवा बहकी सुन छंदन को |
ReplyDeleteदुइ हाथ अबीर गुलाल लिये,मन भाग चला अभिनंदन को ..
वाह अरुण जी ... मन झूम झूम उठा इन लाजवाब छंदों को पढ़ के ... या सच कहूं तो गा गा के ... बेहतरीन .... लाजवाब ....
वाह वाह,,,,भाई मान गए अरुण जी,,,
ReplyDeleteरचना करते सभी है,गये आपको मान
रचनाओं से आपकी,मिलता हमको ज्ञान,,,,,,
RECENT P0ST फिर मिलने का
सुंदर गुरु वंदना |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-
मेरा काव्य-पिटारा:बुलाया करो
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
बहुत सुन्दर भावपूर्ण गुरु वंदना ...
ReplyDeleteवाह मज़ा आ गया आज आपकी यह रचना पढ़कर बहुत ही सुंदर काव्य अरुण जी बेहतरीन रचना...
ReplyDeletevery appealing creation.
ReplyDeletevery appealing creation.
ReplyDeleteसुंदर है दुर्मिल सवैया, श्रेष्ठ गुरु-ज्ञान मिला
ReplyDeleteनिर्मल मन के अन्दर,प्रभु को है मान मिला
वाह वाह अरुण जी अद्भुत है
ReplyDeleteबार बार पढ़ने को मन करता है
स्तुति में प्रयोग करने लायक रचना
भाई अरुण इस अजर अमर काव्य को नमन
बहुत सुन्दर भावपूर्ण
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण गुरु वंदना । इस सुंदर रचना के लिये आपका आभार भी और आपको बधाई भी ।
ReplyDeleteवाह! अद्भुत और भावपूर्ण गुरु वन्दन...
ReplyDelete.
ReplyDeleteप्रियवर अरुण कुमार निगम जी
कुछ समय पश्चात् आना हुआ है आपके यहां ।
दोहे भी पढ़े… कुंडलियां भी…
लेकिन यहां आ'कर तो भावविभोर हो गया …
गुरुदेव कहाँ गुरुदेव कहाँ , अँखियाँ तरसीं हरि दर्शन को |
इत मंदिर में उत जंगल में,फिर झाँक उठीं मन दर्पन को ||
आहाऽऽहाऽऽ… जिसका मन गुरुदेव के प्रति समर्पित न हो , वहां भी श्रद्धा भाव जाग्रत हो जाए …
बहुत सुंदर रचना !
सादर शुभकामनाओं सहित…