"दीप-पर्व की शुभकामनाएँ" - "अप्प दीपो भव"
मशीखत के जहाँ जेवर वहाँ तेवर नहीं होते
जमीं से जो जुड़े होते हैं उनके पर नहीं होते।
जिन्हें शोहरत मिली वो व्यस्त हैं खुद को जताने में
वरगना आपकी नजरों में हम जोकर नहीं होते।
अहम् ने इल्म पर कब्जा किया तो कौन पूछेगा
हरिक दिन एक जैसे तो कभी मंजर नहीं होते।
बसेरा हो जहाँ भी प्यार की दौलत लुटा डालो
मकां कहती जिसे दुनिया वो ढाँचे घर नहीं होते।
"अरुण" संदेश देता है जगत को "अप्प दीपो भव"
उजाले दिल में होते हैं सुनो बाहर नहीं होते।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
( मशीखत - बड़प्पन, इल्म - ज्ञान, अरुण - सूर्य, अप्प दीपो भव - अपना दीपक आप बनो)
बहुत अच्छी सामयिक रचना
ReplyDeleteआपको भी दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
बेहतरीन!!!! भैया वर्तमान साहित्य पुरोधा के लिए सटीक ज़वाब.... दीपोत्सव की हार्दिक बधाई सहित सादर प्रणाम भैया....🌹🌹🙏🙏🌹🌹
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