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Tuesday, January 15, 2013

मान जाओ प्रिये.....


मान जाओ प्रिये.....

है मिलन की घड़ी
मत करो हड़ब‌ड़ी |

इतनी जल्दी तुम्हें
जाने की क्या पड़ी |

पास  बैठो  अजी
दूर क्यों हो खड़ी |

देख  लूँ   मैं  जरा
रूप की फुलझड़ी |

छोड़ दो - छोड़ दो
आँसुओं की झड़ी |

हँसके बिखरा भी दो
मोतियों  की  लड़ी |

वक़्त कम है मगर
ज़िंदगी    है    बड़ी |

मान   जाओ   प्रिये
क्यों हो जिद पे अड़ी |

बाँध कर देख लो
प्यार की हथकड़ी |

है  महल  से  हसीं
प्रेम   की   झोपड़ी ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्यप्रदेश)

13 comments:

  1. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
    आर्यावर्त में समाचार और आलेख प्रकाशन के लिए सीधे संपादक को editor.aaryaavart@gmail.com पर मेल करें।

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  2. सपना जी का आगमन
    औ प्रेम भरी बरसात
    मन मयूर है नाच रहा
    वाह जी वाह क्या बात .....

    सुंदर प्रस्तुति

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  3. क्या दोहा क्या सोरठा, कुण्डलियाँ लाजवाब।

    कवित्त आपकी पठन को, रहते हम बेताब।।

    सादर साभार .......

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  4. वाह .. खूबसूरत रचना, निगम जी, आपके व्विध रूप की रचनाएँ मन मोह रही है शुभकामनाएं

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  5. वाह जी वाह ... इस छोटी बहर का कमाल छा रहा है आज ...
    हर शेर लाजवाब ... भई वाह ...

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  6. वाह वाह,,,अरुण जी बहुत सुंदर कमाल की प्रस्तुति,,,बधाई,,,

    recent post: मातृभूमि,

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  7. है महल से हसीं
    प्रेम की झोपड़ी ||

    ....वाह! लाज़वाब ग़ज़ल...

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  8. वाह गुरुदेव वाह क्या बात मज़ा आ गया शानदार लाजवाब रचना,

    पढ़के तबियत मेरी,
    कुछ जुदा हो चली....

    सादर

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  9. बाँध कर देख लो
    प्यार की हथकड़ी |

    है महल से हसीं
    प्रेम की झोपड़ी ||

    बहुत खूब,,,
    सुन्दर रचना ....
    सादर !

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  10. है महल से हसीं
    प्रेम की झोपड़ी.....sahi baat....

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  11. एक नज़र देखो इधर
    आँख तुम पर ही गड़ी :-)

    बहुत बढ़िया रचना....
    आनंद आया पढ़ कर....

    सादर
    अनु

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