मौसम के दोहे...
जाने को है शिशिर ऋतु , आने को ऋतुराज
आग जला कर झूम लें,हम तुम मिलकर आज ||
सूर्य उत्तरायण हुए , मकर – संक्रांति पर्व
जन्में भारत - देश में , हमें बड़ा है गर्व ||
मिलजुल कर रहना सदा, हर खाई को पाट
मीठा-मीठा बोल कर , सबको तिल गुड़ बाँट ||
सरसों झूमें झाँझ ले , गेहूँ गाये गीत
चना नाचता मस्त हो , तिल तो बाँटे प्रीत ||
मटर मटकता बावरा , मूंगफली मुस्काय
मुँह मसूर का खिल उठा, मौसम खूब सुहाय ||
नेह रेशमी डोर फिर , माँझे का क्या काम
प्रेम – पतँगिया झूमती ,ज्यों राधा सँग श्याम ||
ऋतु आवत – जावत रहे , पतझर पाछ बसन्त
प्रेम – पत्र कब सूखता ? इसकी आयु अनन्त ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्यप्रदेश)
ऋतु -परब गुन सुन्दर रचे, कैसे करूं बखान।
ReplyDeleteप्रेम हृदय से होत है, महिमा प्रेम महान।।
तिल-संक्रांति की बहुत बहुत बहुत बधाई ....
व ऋतुराज बसंत के आगमन की हार्दिक शुभकामनाएं ...
महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
ReplyDeleteसज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
आपको भी मकर संक्राति की मंगलमय कामनाये !
ReplyDeleteलाजवाब दोहे ...मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ..
ReplyDelete:-)
बहुत सुंदर दोहे .... मकर संक्रांति की शुभकामनायें
ReplyDeletehttp://urvija.parikalpnaa.com/2013/01/blog-post_14.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर दोहे
ReplyDeleteबहुत बढ़िया दोहे....
ReplyDeleteआपको भी मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
सादर
अनु
देश की काया पर आज जो जख्म है .उस पर मरहम का लेप कर रही है यह प्रेम पगी रचना शुभकामना शुभभाव से प्रेरित .सरकार की नालायकी का एक बड़ा फायदा हुआ है बिखरा हुआ समाज
ReplyDeleteसंगठित हो गया है .आज सरकार ही सब कुछ है पुलिस भी सरकार है शिक्षा भी सेहत भी हर जगह अव्यवस्था ही अव्यवस्था है .
एक प्रतिक्रिया ब्लॉग पोस्ट :
बहुत अच्छी तरह से आपने ऋतुओं पर इस कविता में बात कही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रभावी उम्दा दोहे,,,अरुण जी,,,
ReplyDeleteमकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!,,,,
recent post: मातृभूमि,
बहुत ही अच्छा
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