मान जाओ प्रिये.....
है मिलन की घड़ी
मत करो हड़बड़ी |
इतनी जल्दी तुम्हें
जाने की क्या पड़ी |
पास बैठो अजी
दूर क्यों हो खड़ी |
देख लूँ मैं जरा
रूप की फुलझड़ी |
छोड़ दो - छोड़ दो
आँसुओं की झड़ी |
हँसके बिखरा भी दो
मोतियों की लड़ी |
वक़्त कम है मगर
ज़िंदगी है बड़ी |
मान जाओ प्रिये
क्यों हो जिद पे अड़ी |
बाँध कर देख लो
प्यार की हथकड़ी |
है महल से हसीं
प्रेम की झोपड़ी ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर,दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर , जबलपुर (मध्यप्रदेश)
प्रभावशाली ,
ReplyDeleteजारी रहें।
शुभकामना !!!
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सपना जी का आगमन
ReplyDeleteऔ प्रेम भरी बरसात
मन मयूर है नाच रहा
वाह जी वाह क्या बात .....
सुंदर प्रस्तुति
सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteक्या दोहा क्या सोरठा, कुण्डलियाँ लाजवाब।
ReplyDeleteकवित्त आपकी पठन को, रहते हम बेताब।।
सादर साभार .......
वाह .. खूबसूरत रचना, निगम जी, आपके व्विध रूप की रचनाएँ मन मोह रही है शुभकामनाएं
ReplyDeleteवाह जी वाह ... इस छोटी बहर का कमाल छा रहा है आज ...
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब ... भई वाह ...
वाह वाह,,,अरुण जी बहुत सुंदर कमाल की प्रस्तुति,,,बधाई,,,
ReplyDeleterecent post: मातृभूमि,
है महल से हसीं
ReplyDeleteप्रेम की झोपड़ी ||
....वाह! लाज़वाब ग़ज़ल...
वाह गुरुदेव वाह क्या बात मज़ा आ गया शानदार लाजवाब रचना,
ReplyDeleteपढ़के तबियत मेरी,
कुछ जुदा हो चली....
सादर
बाँध कर देख लो
ReplyDeleteप्यार की हथकड़ी |
है महल से हसीं
प्रेम की झोपड़ी ||
बहुत खूब,,,
सुन्दर रचना ....
सादर !
है महल से हसीं
ReplyDeleteप्रेम की झोपड़ी.....sahi baat....
एक नज़र देखो इधर
ReplyDeleteआँख तुम पर ही गड़ी :-)
बहुत बढ़िया रचना....
आनंद आया पढ़ कर....
सादर
अनु
Very beautifully expressed....Arun ji
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