रजकण हूँ आंगन में बिखरा रहने दो
नयनों में तुम नहीं बसाना – पीड़ा होगी.
क्रंदन हूँ कोयल की पंचम तानो का
अधरों पर तुम मुझे न लाना – पीड़ा होगी.
कीचड़ से बच कर चलना ही श्रेयस्कर है
वरना आँचल पर कलंक लग जायेगा
देहरी के बाहर पग धरना उचित नहीं है
निर्लज कंटक हाय ! अंक लग जायेगा.
शुभ-चिंतक हूँ दर्पण में तुम उम्र बाँच लो
मत अब कोई कदम बढ़ाना – पीड़ा होगी..............
शहनाई की मधुर रागिनी , रचो महावर
और हथेली पर मेंहंदी की रांगोली दो
दीवाली कर लो तुम अपने वर्तमान को
और अतीत की स्मृतियों को अब होली दो.
अंतिम आशीर्वाद लिये जब मैं आऊंगा
मत घूँघट से पलक उठाना – पीड़ा होगी..................
चूड़ी खनका कर अपने पैंजन झनका कर
कहना – ‘ कवि मैं गीत तुम्हारे लौटाती हूँ ’
इस चकोर के आगे मत तुम नीर बहाना
बरना हर इक बूँद कहेगी –मैं स्वाती हूँ.
और सुनो तुम मुक्त-भाव से हँसती रहना
होंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी..................
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
चूड़ी खनका कर अपने पैंजन झनका कर
ReplyDeleteकहना – ‘ कवि मैं गीत तुम्हारे लौटाती हूँ ’
इस चकोर के आगे मत तुम नीर बहाना
बरना हर इक बूँद कहेगी –मैं स्वाती हूँ.
bahut bahut komal ehsaas
बहुत बढ़िया सर।
ReplyDeleteसादर
इस कविता की बिम्ब योजना प्रभावित करती है। मन के आहसासों को अभिव्यक्त करने में सफल हुई है।
ReplyDeleteसुन्दर भाव और अभिव्यक्ति |
ReplyDeleteबधाई
आशा
बहुत बढ़िया गीत लिखा है आपने तो!
ReplyDeleteऔर सुनो तुम मुक्त-भाव से हँसती रहना
ReplyDeleteहोंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी.
.बेहद सुन्दर प्रस्तुति, सुन्दर अभिव्यक्ति
दीवाली कर लो तुम अपने वर्तमान को
ReplyDeleteऔर अतीत की स्मृतियों को अब होली दो.
क्या खूब कही है अरुण भाई...
सादर...
होंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी..................
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति ||
बधाई ||
देहरी के बाहर पग धरना उचित नहीं है
ReplyDeleteनिर्लज कंटक हाय ! अंक लग जायेगा.
बहुत सुण्दर भाव।
शहनाई की मधुर रागिनी , रचो महावर
ReplyDeleteऔर हथेली पर मेंहंदी की रांगोली दो
दीवाली कर लो तुम अपने वर्तमान को
सुन्दर रचना.
रजकण हूँ आंगन में बिखरा रहने दो
ReplyDeleteनयनों में तुम नहीं बसाना-पीड़ा होगी
क्रंदन हूँ कोयल की पंचम तानो का
अधरों पर तुम मुझे न लाना-पीड़ा होगी।
प्रेमाभिव्यक्ति का अनोखा रूप गीत में साकार हो उठा है।
खुबसूरत और प्रभावपूर्ण अभिवयक्ति...
ReplyDeleteऔर सुनो तुम मुक्त भाव से हंसते रहना,
ReplyDeleteव्होंठ काट कर मत मुस्काना पीड़ा होगी।
बेहतरीन छंदबद्ध कविता जिसमें आध्यात्म का पुट भी समाहित है के लिये अरूण भाई को मुबारकबाद।
khubsurat ehsaaso se rachi rachna....
ReplyDeleteचूड़ी खनका कर अपने पैंजन झनका कर
ReplyDeleteकहना – ‘ कवि मैं गीत तुम्हारे लौटाती हूँ ’
इस चकोर के आगे मत तुम नीर बहाना
बरना हर इक बूँद कहेगी –मैं स्वाती हूँ.
और सुनो तुम मुक्त-भाव से हँसती रहना
होंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी....
बहुत सुन्दर ..मनभावन रचना ..
चूड़ी खनका कर अपने पैंजन झनका कर
ReplyDeleteकहना – ‘ कवि मैं गीत तुम्हारे लौटाती हूँ ’..
वाह ... बुत ही मधुर गीत की तरह ... सीधे दिल में उतर्जाती है ये ये रचना ... सुन्दर मनोभाव ...
Bahut hi pyari kavita hai Nigam Jee , komal , manbhavan , mahkti hui..shubhkamna
ReplyDeleteअंतिम आशीर्वाद लिये जब मैं आऊंगा
ReplyDeleteमत घूँघट से पलक उठाना – पीड़ा होगी....
उफ.....
शब्द-शब्द संवेदना भरा है...
मन को भाने वाले शब्द।
ReplyDeletebahut sundarbhvabhivyakti .gungunane ke liye vivash karne vaali rachna
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना .
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
ReplyDeleteएस .एन. शुक्ल
और सुनो तुम मुक्त-भाव से हँसती रहना
ReplyDeleteहोंठ काट कर मत मुस्काना – पीड़ा होगी..................
निश्छल प्रेम की लाज़वाब प्रस्तुति..एक एक शब्द प्रेम के गहन रंग में रंगा हुआ है..अद्भुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..