मैं धूल हूँ , तुम चंदन रोली
तुम दीवाली , मैं हूँ होली
तुम ज्योति , मैं हूँ अंधकार
मैं अर्थी हूँ , तुम हो डोली.
तुम प्राची की ऊषा – लाली
मैँ क्षितिज – अरुण अस्ताचल का
तुम दाग से बच कर चलती हो
मैं दाग किसी के काजल का.
मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
तुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.
मणिकांचन जीवन का आंगन
जीवन का आसव है तुमसे
मैं मृत्यु-पुजारी हूँ मेरा
मिलन असम्भव है तुमसे.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग
(छत्तीसगढ़)
{रचना वर्ष – 1978}
मिलन कहां, अब तुम्ही कहो,
ReplyDeleteतुम स्नेह सुधा, मैं विष प्याला।
वाह, बहुत सुंदर रचना।
मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद...खूबसूरत अभिव्यक्ति...आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
ReplyDeleteतुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.
बहुत ही अच्छा लिखा है सर।
सादर
मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
ReplyDeleteतुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.
behtareen bhaw
गज़ब की भावाव्यक्ति………बहुत सुन्दर शब्द संयोजन
ReplyDeleteविपरीत भावों को खूबसूरती से लिखा है ..बहुत अच्छी रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे शब्दों द्धारा बताया है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत है अरुण भाई...
ReplyDeleteसादर बधाई....
main aur tum ki bhaut hi khubsurat abhivaykti....
ReplyDeleteबहुत सारगर्भित प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिब्यक्ति .दिल से लिखी गई रचना./बहुत बदिया ,दिल को छु गई/बधाई आपको /
ReplyDeleteplease visit my blog and leave the comments also.thanks.
दोनों के एहसास को बहुत खूबसूरती से परिभाषित करती सुन्दर रचना |
ReplyDeleteसार्थक और सारगर्भित पोस्ट......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्द संयोजन
ReplyDeleteमिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
ReplyDeleteतुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.
...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति..शब्दों, भावों और लय का सुन्दर संयोजन..