ना कहने की आदत उसकी भली लगे
शोख शरारत ज्यों मिसरी की डली लगे.
एक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
रास रचाती वृन्दावन की गली लगे.
नजरों से ओझल हो तो लगती खुशबू
नजर जो आये तो जूही की कली लगे.
मक्खन जैसा हृदय , प्रेम गोरस जैसा
गोकुल की ग्वालन, मथुरा की गली लगे.
-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखी है आपने!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..आपने तो गोकुल , मथुरा और वृन्दावन सब घुमा दिया ..मिस्री कि डली सी रचना :):)
ReplyDeleteएक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
ReplyDeleteरास रचाती वृन्दावन की गली लगे.
Bahut Sunder....
tabhi.... yah poori rachna pyaari lage
ReplyDeleteमक्खन जैसा हृदय , प्रेम गोरस जैसा
ReplyDeleteगोकुल की ग्वालन, मथुरा की गली लगे.
आन्तरिक भावों के सहज प्रवाहमय सुन्दर रचना....
बेहतरीन गज़ल लिखी है सर!
ReplyDeleteसादर
बेहद खुबसूरत रचना.आभार
ReplyDeleteएक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
ReplyDeleteरास रचाती वृन्दावन की गली लगे.
....
वाह ! बहुत सुन्दर प्रवाहमयी गज़ल..
एक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
ReplyDeleteरास रचाती वृन्दावन की गली लगे.
बहुत अच्छा लगा यह प्रयोग। पूरी ग़ज़ल ही बहुत अच्छी लगी।
आपकी ग़ज़ल पहली बार पढ़ी। बहुत अच्छा लिखते हैं आप तो।
ReplyDeleteआपकी पिछली कविताएं और ग़ज़लें एक-एक कर के पढ़ूंगा।
मक्खन जैसा हृदय , प्रेम गोरस जैसा
ReplyDeleteगोकुल की ग्वालन, मथुरा की गली लगे.
क्या बात है अरुण भाई,कमाल की कविता है.
मन भक्तिमय हो गया.
एक आँख में राधा, दूसरी में कान्हा
ReplyDeleteरास रचाती वृन्दावन की गली लगे...
वाह गोकुल के प्रेम को शेरों में उतार दिया ... बहुत सुन्दर ...