( सन उन्नीस सौ अस्सी में लिखी गई मेरी एक गज़ल )
एक सूखा सा गुलाब ज़िंदगी
आह दर्द का सैलाब ज़िंदगी.
आग में जलता रहे जो उम्र भर
ऐसा रोशन आफ्ताब ज़िंदगी.
बेजुबाँ से पूछिये कुछ भी अगर
खामोशी का है जवाब ज़िंदगी.
एक धोखा खूबसूरत और हसीं
मौत पर लिपटा नकाब ज़िंदगी.
तोड़िये फिर जोड़िये जाने जिगर
किस कदर है बेहिसाब ज़िंदगी.
उम्र के पन्नों पे है लिखी हुई
प्यार की ये एक किताब ज़िंदगी.
दिल की बात खुल के आज लिख ‘अरुण’
जैसी है , है लाजवाब ज़िंदगी.
(कृपया मेरे अन्य ब्लाग्स में भी पधारें तथा छत्तीसगढ़ी को जानें)
-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग ( छत्तीसगढ़ )
बेजुबाँ से पूछिये कुछ भी अगर
ReplyDeleteखामोशी का है जवाब ज़िंदगी.
एक धोखा खूबसूरत और हसीं
मौत पर लिपटा नकाब ज़िंदगी.
वाह!....क्या लाजवाब ग़ज़ल कही है.
हर शेर यथार्थ के भावों से तराशे हैं आपने !
बेजुबाँ से पूछिये कुछ भी अगर
ReplyDeleteखामोशी का है जवाब ज़िंदगी.
बहुत खूबसूरत लगा ज़िंदगी का फलसफा ..
जिंदगी सबसे हसीन है फ़र्क जीने वाले का है,
ReplyDeleteउम्र के पन्नों पे है लिखी हुई
ReplyDeleteप्यार की ये एक किताब ज़िंदगी
बहुत खूबसूरत
बेहतरीन गज़ल ,मतला सबसे अच्छा लगा बधाई अरूण भाई।
ReplyDeleteतोड़िये फिर जोड़िये जाने जिगर
ReplyDeleteकिस कदर है बेहिसाब ज़िंदगी...
A beautiful ghazal with a wonderful lesson in it.
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आह दर्द का सैलाब ज़िंदगी.से....
ReplyDeleteजैसी है , है लाजवाब ज़िंदगी.बहुत हि उम्दा गज़ल है