(अरुण = सूर्य)
“ मैं अरुण हूँ “
इतना परिचय तुम्हें पर्याप्त न था
और जब तुम पूछ बैठे
हो मेरा विस्तार तो
सुन लो कि मैं स्वयं ही
जलता रहा हूँ उम्र भर.
हर सुबह ऊषा सिंदूरी
ओढ़ चूनर अपने द्वारे
कलरवी शहनाइयों से
नित रिझाती है मुझे.
रश्मि भी श्रृंगार करके
मांग अपनी जगमगाये
पालती है भ्रम – मैं ही
संगिनी हूँ इस अरुण की.
और प्रकृति भी बेचारी
इसी भ्रम में फँस गई है
इसलिये मेरे उदित
होते ही वह श्रृंगार करती.
कुमुदिनी भी बंद पलकें
खोल कर यूँ देखती है
जिस तरह इक प्रेयसी
प्रियतम के आने पर मधुर
मुस्कान लेकर देखती है.
सूर्यमुखी भी एकटक
मेरी तरफ क्यूँ देखती है
झील में स्नान करके
पवन इठलाकर समूचे
विश्व को बतलाती फिरती
अरुण मेरा आ गया है.
किंतु मैं आसक्त कैसे
हो सकूँ इन सजनियों पर
हर किसी से मेरी दूरी
गगन से ऊँची हुई है.
शून्य है सुनसान है मेरा बसेरा
देश मेरा शून्य है
परिवेश मेरा अग्नि है.
एक मरुथल भी नहीं है पास मेरे.
दहकना मेरी गति है
मुस्कुराना धर्म मेरा
जल के सबको रोशनी दूँ
बस यही है कर्म मेरा.
ह्रदय मुझमें है कहाँ जो
प्रेम अम्रृत भर सकूँ
कोई अपना भी नहीं कि
बात उससे कर सकूँ.
हाथ मेरे हैं नहीं तो
हस्त रेखा हो कहाँ
कंठ मेरा है नहीं कि
गीत गाऊँ प्यार के.
हाँ ! किसी दिन भूल से
मुझ पर किसी की याद का
साया पड़े तो जान लेना
मैं पराया हो चुका हूँ.
यूँ तो सारा जग भ्रमित है
जो मेरे पावन बदन पर
देख कर यादों का साया
ग्रहण का है दोष देता.
प्रेम की उस पवित्रता को
इक अपावन दोष कह कर
जग कलंकित कर रहा है.
किंतु फिर भी मैं कभी
अपनी प्रिया के नाम को
भूल से बतला न दूँ
बस इसी एक बात पर
मैं मौन हूँ खामोश हूँ मैं
और जलता हूँ किसी की
याद में आठों पहर.
हाँ ! तुम्हें अब प्यार कैसे
कर सकूँ तुम ही कहो
मैं किसी का हो चुका हो हूँ
तुम न मेरे स्वप्न देखो
बस अपरिचित की तरह
दूरियाँ मुझसे रखो.
प्यार मेरा खो गया है
इस असीम आकाश में
इसलिये तन को जला कर
रोशनी में मैं निरंतर
ढूँढता हूँ मीत अपना
बस इसी कोशिश में मैं
जलता रहूंगा उम्र भर.
-अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
बेहतरीन अभिव्यक्ति अरूण की ।
ReplyDeleteशून्य है सुनसान है मेरा बसेरा
ReplyDeleteदेश मेरा शून्य है
परिवेश मेरा अग्नि है.
एक मरुथल भी नहीं है पास मेरे.
जीवन की वास्तविकता और सत्यों को उद्घाटित करती रचना सच में जीवन के अस्तित्व को सामने लाती है और जीवन के महत्व को उद्घाटित करती है ....!
दय मुझमें है कहाँ जो
ReplyDeleteप्रेम अम्रृत भर सकूँ
कोई अपना भी नहीं कि
बात उससे कर सकूँ.
हाथ मेरे हैं नहीं तो
हस्त रेखा हो कहाँ
कंठ मेरा है नहीं कि
गीत गाऊँ प्यार के.
सुन्दर अभिव्यक्ति, प्रभावशाली रचना....
बहुत खूबसूरत बिम्बों को लेकर अरुण का परिचय दिया ... उपमाएं सटीक लिखी हैं ..
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति, प्रभावशाली रचना
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन एवं उम्दा अभिव्यक्ति!! आनन्द आ गया.
ReplyDeletebhut hi sunder aur sarthak parichaye...
ReplyDeleteबेहतरीन लिखते हैं सर!
ReplyDeleteसादर
बहुत सुंदर ...कमाल का बिम्ब लेकर रची प्रभावी रचना
ReplyDelete---सुन्दर रचना....
ReplyDeleteदाहक कर भी मुस्कुराता हूँ सदा ,
मैं अरुण हूँ अग्नि ही है मीत मेरा |
प्यार मेरा खो गया है
ReplyDeleteइस असीम आकाश में
इसलिये तन को जला कर
रोशनी में मैं निरंतर
ढूँढता हूँ मीत अपना
बस इसी कोशिश में मैं
जलता रहूंगा उम्र भर.
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल कल ३० - ६ - २०११ को यहाँ भी है
ReplyDeleteनयी पुरानी हल चल में आज -
अच्छा लगा ये परिचय, आभार।
ReplyDelete------
ओझा उवाच: यानी जिंदगी की बात...।
नाइट शिफ्ट की कीमत..
gazab ki shabd rachna hai.......bemisal upma hai.....wah......
ReplyDeleteइसलिये तन को जला कर
ReplyDeleteरोशनी में मैं निरंतर
ढूँढता हूँ मीत अपना
बस इसी कोशिश में मैं
जलता रहूंगा उम्र भर.
बहुत उम्दा.....
यूँ तो सारा जग भ्रमित है
ReplyDeleteजो मेरे पावन बदन पर
देख कर यादों का साया
ग्रहण का है दोष देता.
मर्मस्पर्शी रचना
गज़ब का शब्द संयोजन .
ReplyDeleteसुन्दर कविता.
ह्रदय मुझमें है कहाँ जो
ReplyDeleteप्रेम अम्रृत भर सकूँ
कोई अपना भी नहीं कि
बात उससे कर सकूँ.
हाथ मेरे हैं नहीं तो
हस्त रेखा हो कहाँ
कंठ मेरा है नहीं कि
गीत गाऊँ प्यार के.
bahut hi achhi rachna
बहुत ही सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रभावी भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर परिचय :) बेहतरीन !!
ReplyDeleteबेहतरीन अभिव्यक्ति...
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