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Saturday, December 8, 2012

कुण्डलिया :



पीले चाँवल द्वार.....

पंगत की रंगत गई  , गया प्रेम सत्कार
नयन तरसते देखने पीले चाँवल द्वार
पीले चाँवल द्वार  , हुआ कैसा परिवर्तन
मोबाइल से कभी,मेल से मिले निमंत्रण
हुये सभी रोबोट, मशीनों की कर संगत
गया प्रेम सत्कार , खो गई पत्तल पंगत ||

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

7 comments:

  1. बहुत खूब,,,आपने बहुत सही लिखा,,अरुण भाई

    रोबोट हुआ इन्सान,देखो इनकी रंगत
    खड़े२ खाने के आगे,भूल गये है पंगत,,,

    recent post: बात न करो,

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  2. मोबाइल से कभी,मेल से मिले निमंत्रण

    बढ़िया कुण्डलिया !!

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  3. वर्तमान परिस्थितियां बताती बहुत ही
    बेहतरीन कुंडलियाँ...
    :-)

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  4. आज मेल आओर मोबाइल तक ही प्रेम सीमित कहें या विस्तृत....हो गया है ॥

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  5. वर्तमान को हूबहू उतारा है अरुण जी ... बहुत लाजवाब ...

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  6. सत्यता को बहुत ही सहजता से उतारा है आदरणीय अरुण सर बधाई स्वीकारें
    अरुन शर्मा
    Recent Post हेमंत ऋतु हाइकू

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  7. वाह!! शुभकामनाएँ.

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