कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त
मन की चाहत सोचती, बनूँ
निराला पन्त |
शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत |
शकुन्तला को ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |
कोहरा रोके रास्ता , ओस चूमती देह
लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह |
ऊन बेचता हर गली , जलता
हुआ अलाव
पवन अगहनी मांगती , औने -
पौने भाव |
मौसम का ले लो मजा, शहरी
चोला फेंक
चूल्हे के अंगार में , मूँगफल्लियाँ सेंक |
मक्के की रोटी गरम , खाओ गुड़ के संग
फिर देखो कैसी जगे, तन
मन मस्त तरंग |
गर्म पराठे कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
गाजर का हलुवा कहे, ले
लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर,
मुझको करके याद |
सीताफल हँसने लगा , खिले
बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |
भाँति भाँति के कंद ने, दिखलाया है रूप
इस मौसम भाती नहीं, किसे
सुनहरी धूप |
मौसम उर्जा बाँटता , है जीवन पर्यंत
संचित तन मन में करो,सदा रहो बलवंत |
अरुण
कुमार निगम
आदित्य
नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
हेमंत के दोहों ने , खूब दिलाई याद
ReplyDeleteहलवा,साग औ गुड़ का , आ गया है स्वाद ।
सुन्दर दोहे...
ReplyDeleteहेमन्त ऋतु का अति सुन्दर वर्णन....
ReplyDeleteबहुत ही बेहतरीन दोहे...
सुन्दर....
:-)
वाह ,,, बहुत उम्दा,
ReplyDeleteलाजबाब प्रस्तुति दोहों के संग,
हेमन्त ऋतु का अनोखा रंग,,,,
recent post: रूप संवारा नहीं,,,
आपके उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
ReplyDeleteसूचनार्थ |
निगम जी ,माफ़ी चाहते हैं ,काफी दिनों बाद मुलाकात के लिए .....वास्तव में आपको पढ़ना भाषा व भावों को समवेत दृष्टि से देखना है ....बधाईयाँ जी ....कारवां गाफिल न हो ...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना,
ReplyDeleteगर्म पराठे कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
गाजर का हलुवा कहे, ले लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर, मुझको करके याद |
सीताफल हँसने लगा , खिले बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |
अरुण जी नेट वर्क बंद होने के कारण महोत्सव में नहीं पढ़ पाई थी पर ओ बी ओ पर पढने के बाद दुबारा लुत्फ़ उठा रही हूँ इन दोहों का बहुत अच्छे दोहे लिखे बहुत बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteकाव्य सौन्दर्य ,भाव विचार ,राग ,मल्हार और हेमंत में खान पान की सहज अभिव्यक्ति जन भाषा में .मोहक रूप दोहावली का .आप भी पढ़ें -
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
TUESDAY, DECEMBER 11, 2012
हेमन्त ऋतु के दोहे
कार्तिक अगहन पूस ले, आता जब हेमन्त
मन की चाहत सोचती, बनूँ निराला पन्त |
शाल गुलाबी ओढ़ कर, शरद बने हेमंत |
शकुन्तला को ढूँढता , है मन का दुष्यन्त |
कोहरा रोके रास्ता , ओस चूमती देह
लिपट-चिपट शीतल पवन,जतलाती है नेह |
ऊन बेचता हर गली , जलता हुआ अलाव
पवन अगहनी मांगती , औने - पौने भाव |
मौसम का ले लो मजा, शहरी चोला फेंक
चूल्हे के अंगार में , मूँगफल्लियाँ सेंक |
मक्के की रोटी गरम , खाओ गुड़ के संग
फिर देखो कैसी जगे, तन मन मस्त तरंग |
गर्म पराठे कुरकुरे , मेथी के जब खायँ
चटनी लहसुन मिर्च की,भूले बिना बनायँ |
गाजर का हलुवा कहे, ले लो सेहत स्वाद
हँसते रहना साल भर, मुझको करके याद |
सीताफल हँसने लगा , खिले बेर के फूल
सरसों की अँगड़ाइयाँ, जलता देख बबूल |
भाँति भाँति के कंद ने, दिखलाया है रूप
इस मौसम भाती नहीं, किसे सुनहरी धूप |
मौसम उर्जा बाँटता , है जीवन पर्यंत
संचित तन मन में करो,सदा रहो बलवंत |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर , दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)