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Thursday, August 18, 2011

मैं और तुम.........

मैं धूल हूँ , तुम चंदन रोली
तुम दीवाली , मैं  हूँ  होली
तुम ज्योति , मैं हूँ अंधकार
मैं अर्थी हूँ , तुम हो डोली.

तुम प्राची की ऊषा – लाली
मैँ क्षितिज – अरुण अस्ताचल का
तुम दाग से बच कर चलती हो
मैं दाग किसी के काजल का.

मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
तुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
तुम गंगाजल , मैं  मधुशाला.

मणिकांचन जीवन का आंगन
जीवन का आसव है तुमसे
मैं मृत्यु-पुजारी हूँ मेरा
मिलन असम्भव है तुमसे.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग
(छत्तीसगढ़)


{रचना वर्ष – 1978}

16 comments:

  1. मिलन कहां, अब तुम्ही कहो,
    तुम स्नेह सुधा, मैं विष प्याला।

    वाह, बहुत सुंदर रचना।

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  2. मेरे ब्लाग पर आने के लिए धन्यवाद...खूबसूरत अभिव्यक्ति...आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  3. मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
    तुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
    विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
    तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.

    बहुत ही अच्छा लिखा है सर।

    सादर

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  4. मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
    तुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
    विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
    तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.
    behtareen bhaw

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  5. गज़ब की भावाव्यक्ति………बहुत सुन्दर शब्द संयोजन

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  6. विपरीत भावों को खूबसूरती से लिखा है ..बहुत अच्छी रचना

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  7. बहुत ही अच्छे शब्दों द्धारा बताया है।

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  8. बहुत सुन्दर गीत है अरुण भाई...
    सादर बधाई....

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  9. main aur tum ki bhaut hi khubsurat abhivaykti....

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  10. बहुत सारगर्भित प्रस्तुति.

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  11. बहुत सुंदर अभिब्यक्ति .दिल से लिखी गई रचना./बहुत बदिया ,दिल को छु गई/बधाई आपको /



    please visit my blog and leave the comments also.thanks.

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  12. दोनों के एहसास को बहुत खूबसूरती से परिभाषित करती सुन्दर रचना |

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  13. सार्थक और सारगर्भित पोस्ट......

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  14. बहुत सुन्दर शब्द संयोजन

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  15. मिलन कहाँ ? अब तुम्हीँ कहो
    तुम स्नेह-सुधा , मैं विष-प्याला
    विस्मृत कर दो अब मुझे प्रिये
    तुम गंगाजल , मैं मधुशाला.

    ...बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति..शब्दों, भावों और लय का सुन्दर संयोजन..

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