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Tuesday, August 30, 2011

नगमे हुये उदास मेरे.....

अब तन्हाई का आलम ही,
दिल को आया रास मेरे
तुम जब मुझसे दूर गई हो,
मौत आ गई पास मेरे.

कैसा यह अपनापन आखिर,
चाह के भूल न पाता हूँ
सोचा गीत खुशी के लिख लूँ,
नगमे हुये उदास मेरे.

हवा बाँधने की कोशिश में,
बाँहें जब फैलाई थी
रेत-महल से चूर हो गये,
सब संचित विश्वास मेरे.

उड़ने की कोशिश की जब भी,
पंखों ने दम तोड़ दिया
उन कदमों की खाक बना मैं,
जितने भी थे खास मेरे.

अब ऐसी कुछ जतन करो कि
धड़कन को आराम मिले
माटी की चादर में बाँधो,
सुख मेरे – संत्रास मेरे.

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,दुर्ग (छत्तीसगढ़)

{रचना वर्ष – 1978}

10 comments:

  1. उड़ने की कोशिश की जब भी,
    पंखों ने दम तोड़ दिया
    उन कदमों की खाक बना मैं,
    जितने भी थे खास मेरे.
    aksar aisa hota hai

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  2. आज यह उदासी का गीत क्यों ? मन के भावों को बखूबी लिखा है ..

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  3. बहुत सुन्दर।
    --
    भाईचारे के मुकद्दस त्यौहार पर सभी देशवासियों को ईद की दिली मुबारकवाद।
    --
    कल गणेशचतुर्थी होगी, इसलिए गणेशचतुर्थी की भी शुभकामनाएँ!

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  4. उड़ने की कोशिश की जब भी,
    पंखों ने दम तोड़ दिया
    उन कदमों की खाक बना मैं,
    जितने भी थे खास मेरे.

    गजब का लिखा है सर!
    ईद मुबारक!

    सादर

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  5. वक्ते मसर्रत और उदासी का गीत ?
    बढ़िया रचना...
    ईद, गणेश चतुर्थी और तीज की हार्दिक बधाईयाँ...
    सादर...

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  6. बहुत सुन्दर --
    प्रस्तुति |
    ईद की बहुत बहुत मुबारकबाद ||
    बधाई ||

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  7. अब ऐसी कुछ जतन करो कि
    धड़कन को आराम मिले
    माटी की चादर में बाँधो,
    सुख मेरे – संत्रास मेरे.

    गजब का दर्द....

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  8. shabd lay chhand sab kuchh bahut badhiya

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  9. बहुत ही मार्मिक रचना....

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