एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये एकाकी से अपनत्व हुआ.
हृदय - धरातल पर होते हैं भाव अंकुरित
नयन-नीर से होता है वह पुष्प पल्लवित
पुष्प जिसे जग ने संज्ञा दी प्रेम-पुष्प की
प्रेम वही जिसे प्राप्त यहाँ अमरत्व हुआ.
एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये एकाकी से अपनत्व हुआ.
शून्य ब्रह्म हो जहाँ नहीं,सविता हो कैसे
प्रेरक रत्नावली नहीं – कविता हो कैसे
प्रेमहीन ! सम्बोधन का पर्याय “असम्भव”
प्रेम-भाव ही जग में जीवन-सत्व हुआ.
एकाकीपन गीत-सृजन का तत्व हुआ
इसीलिये एकाकी से अपनत्व हुआ.
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
बहुत सुंदर भाव संजोये हैं आपने.बधाई
ReplyDeleteये हुई न बात ||
ReplyDeleteएकाकी पन की सौगात ||
दुनिया की आधी रचनाएं,
लेख, बात, बे-बात ||
बेहतरीन रचना बधाई अरूण जी।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteदार्शनिक भी
वास्तविक भी
काव्य के सभी तत्त्वों को समाहित करती हुई...........
शून्य ब्रह्म हो जहाँ नहीं,सविता हो कैसे
प्रेरक रत्नावली नहीं – कविता हो कैसे
प्रेमहीन ! सम्बोधन का पर्याय “असम्भव”
प्रेम-भाव ही जग में जीवन-सत्व हुआ.
उपरोक्त पंक्तियाँ बहुत कुछ समेटे हुए हैं।
सच में गागर में सागर
सुन्दर शब्द-संयोजन.....
बहुत उम्दा भाव-प्रणव प्रस्तुति!
ReplyDeleteएकाकी से अपनत्व ... गहन भावों को समेटे अच्छी रचना ..
ReplyDeleteआस्था और विश्वास से ओतप्रोत सुन्दर रचना !
ReplyDeletebahut sunder bhav liye anoothi kavitaa.badhaai aapko.
ReplyDeleteplease visit my blog.thanks.
बहुत सुन्दर भाव्।
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
ReplyDelete' नीम ' पेड़ एक गुण अनेक..........>>> संजय भास्कर
http://sanjaybhaskar.blogspot.com/2011/07/blog-post_19.html
बहुत सुंदर रचना...
ReplyDeleteआपके ब्लॉग में आकर अच्छा लगा अरुण भाई...
ReplyDeleteबड़े सुन्दर रचनाएं हैं....
सादर...
बहुत अच्छे भाव लिए हुए उत्कृष्ट रचना
ReplyDeletesach kaha ekaki se rachna ka srijan hua.
ReplyDeleteutkrisht abhivyakti.
behtreen abhivaykti....
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