आज के सन्दर्भ में दोहे -
भैया देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि
छुट्टा आवै काम उत,का करि सकै हजारि ।
छुट्टा आवै काम उत,का करि सकै हजारि ।
उनको आवत देख के, छुट्टन करै पुकारि
नोट हजारि बंद हुए, कल अपनी भी बारि ।
नोट हजारि बंद हुए, कल अपनी भी बारि ।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे नोट हजार
मार्किट में चलता नहीं, गायब ब्लैक बजार ।
मार्किट में चलता नहीं, गायब ब्लैक बजार ।
भैया खड़ा बजार में, लिए हजारी हाथ
कोई भी पूछै नहीं, मानो हुआ अनाथ ।
कोई भी पूछै नहीं, मानो हुआ अनाथ ।
अरुण कुमार निगम
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति मौलाना अबुल कलाम आजाद और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteआभार आदरणीय हर्षवर्द्धन जी
Deleteसभी दोहे बढ़िया लगे।
ReplyDeleteआभार आदरणीया ज्योति जी
Deleteसभी दोहे बढ़िया लगे।
ReplyDeleteवाह ।
ReplyDeleteआभार आदरणीय सुशील जी
Deleteएक तो वैसे ही आसमान टूट पड़ा है उन पर ,आप और जले पर मिर्च छिड़क रहे हैं !
ReplyDeleteआभार आदरणीया प्रतिभा जी, अच्छे दिन के आगमन का स्वागत कडुवी दवा से ही होगा, ऐसा सुनते आये हैं. हमें तो धैर्य से प्रतीक्षा ही करने पड़ेगी. सादर.
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