*दोहा छन्द*`
निर्णय के परिणाम से, हर कोई है स्तब्ध
सहनशीलता सर्वदा, जनता का प्रारब्ध ।
सहनशीलता सर्वदा, जनता का प्रारब्ध ।
जनता ने पी ही लिया, फिर से कड़ुवा घूँट
किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट ।
किस करवट है बैठता, देखें अब के ऊँट ।
दूषित नीयत से अरुण, पनपा भ्रष्टाचार
आशान्वित होकर सदा, जनता बनी कतार ।
आशान्वित होकर सदा, जनता बनी कतार ।
आकर कर दो राम जी, दुराचार को नष्ट
राम राज की आस में, जनता सहती कष्ट ।
राम राज की आस में, जनता सहती कष्ट ।
विस्फारित आँखें लिए, ताक रहा आतंक
हर कोई जनता बना, क्या राजा क्या रंक ।
हर कोई जनता बना, क्या राजा क्या रंक ।
अरुण कुमार निगम
waah
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteअरुण जी, सभी दोहे बढिया लगे। भ्रष्टाचार मिटेगा इसी आशा में जनता इतने कष्ट सह रही है।
ReplyDeleteवाह वाह मस्त और सामयिक दोहे हैं ... आज तो सच में क्या राजा क्या रंक ......
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