मन से उपजे गीत (मधुशाला छंद)
ह्रदय प्राण मन और शब्द-लय , एक ताल में जब आते
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी
मन से उपजे गीत-छंद ही, सबका मन हैं छू पाते ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
ह्रदय प्राण मन और शब्द-लय , एक ताल में जब आते
तब ही बनते छंद सुहाने, जो सबका मन हर्षाते
तुकबंदी है टूटी टहनी, पुष्प खिला क्या पाएगी
मन से उपजे गीत-छंद ही, सबका मन हैं छू पाते ||
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-09-2016) को "हिन्दी, हिन्द की आत्मा है" (चर्चा अंक-2460) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteवाह्ह गज़ब बात कह दी अरुण जी ...
सही कहा है ... मन से उपजा सीधे मन में जाता है ...
ReplyDeletehttp://bulletinofblog.blogspot.in/2016/09/7.html
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसुन्दर .... लेकिन अरुण जी जिनको छंदों का न ज्ञान हो और न ही बंधना आता हो वो क्या करें ?
ReplyDeleteमन से उपजे छंद .....वाह.
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