कुछ सामयिक दोहे .....
मैला है यदि आचरण, नीयत में है खोट
रावण मिट सकते नहीं, चाहे बदलो नोट ।
रावण मिट सकते नहीं, चाहे बदलो नोट ।
नैतिक शिक्षा लुप्त है, सब धन पर आसक्त
सही फैसला या गलत, बतलायेगा वक्त ।
बचपन बस्ते में दबा, यौवन काँधे भार
प्रौढ़ दबा दायित्व में, वृद्ध हुए लाचार ।
पद का मद सँभला नहीं, कद पर धन की छाँव
चौसर होती जिंदगी, नए नए नित दाँव ।
दिशा दशा को देख के, कवि-मन चुभते तीर
अंधा बाँटे रेवड़ी, गदहा खाये खीर ।
http://bulletinofblog.blogspot.in/2016/11/blog-post_13.html
ReplyDeleteबहुत सुंदर, एक-एक दोहा एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteबहुत सुंदर, एक-एक दोहा एक से बढ़कर एक
ReplyDeleteवाह अरुण जी ... बहुत ही लाजवाब औरर कमाल के दोहे ... आपका अंदाज़ कमाल का है ...
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