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Tuesday, January 27, 2015

रूपमाला छन्द :
















रूपमाला छन्द :

एक पटरी सुख कहाती , एक का दुख नाम
किन्तु होती साथ दोनों , सुबह हो या शाम
मिलन इनका दृष्टि-भ्रम है, मत कहो मजबूर
एक  ही  उद्देश्य  इनका , हैं  परस्पर  दूर  

चल रही इन पटरियों पर , जिंदगी की रेल
खेलती  विधुना  हमेशा , धूप - छैंया खेल
साँस के लाखों मुसाफिर, सफर करते नित्य
जानता  आवागमन का  कौन है  औचित्य

अड़चनों की गिट्टियाँ भी , खूब देतीं साथ
लौह-पथ  मजबूत  करने , में बँटाती हाथ
भावनाओं  में  कभी भी , हो नहीं टकराव 
सुख मिले या दुख मिले बस, एक-सा हो भाव

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)  
(ओबीओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव -45 में सम्मिलित मेरी रचना)
चित्र ओबीओ से साभार

1 comment:

  1. आज 08/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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