रूपमाला छन्द :
एक पटरी सुख कहाती , एक का दुख नाम
किन्तु होती साथ दोनों , सुबह हो या
शाम
मिलन इनका दृष्टि-भ्रम है, मत कहो
मजबूर
एक ही उद्देश्य
इनका , हैं परस्पर
दूर
चल रही इन पटरियों पर , जिंदगी की रेल
खेलती विधुना
हमेशा , धूप - छैंया खेल
साँस के लाखों मुसाफिर, सफर करते
नित्य
जानता आवागमन का
कौन है औचित्य
अड़चनों की गिट्टियाँ भी , खूब देतीं
साथ
लौह-पथ मजबूत
करने , में बँटाती हाथ
भावनाओं में
कभी भी , हो नहीं टकराव
सुख मिले या दुख मिले बस, एक-सा हो
भाव
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
(ओबीओ चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव -45 में सम्मिलित मेरी रचना)
चित्र ओबीओ से साभार
आज 08/ फरवरी /2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!