अधजल गगरी
छलकत जाये प्राणप्रिये......
कैसे –
कैसे मंजर आये प्राणप्रिये
अपने सारे
हुये पराये प्राणप्रिये |
सच्चे की
किस्मत में तम ही आया है
अब तो
झूठा तमगे पाये प्राणप्रिये |
ज्ञान भरे घट जाने कितने
दफ्न हुये
अधजल गगरी
छलकत जाये प्राणप्रिये |
भूखे -
प्यासे हंसों ने
दम तोड़ दिया
अब कौआ ही मोती खाये प्राणप्रिये |
यहाँ राग - दीपक
की बातें करता था
वहाँ राग – दरबारी गाये
प्राणप्रिये |
सोने –
चाँदी की मुद्रायें
लुप्त हुईं
खोटे सिक्के
चलन में आये प्राणप्रिये
|
सच्चाई के पाँव
पड़ी हैं जंजीरें
अब तो
बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर ,
दुर्ग (छत्तीसगढ़)
सच्चाई के पाँव पड़ी हैं जंजीरें
ReplyDeleteअब तो बस भगवान बचाये प्राणप्रिये |
....बहुत सुन्दर सटीक चिंतन ...
तापन तापे बरखा नहाए हिम को हिम सुहाए..,
ReplyDeleteअधजल घघरी छलकत जाए.....
Bahut hee sunder.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउत्तम प्रस्तुति।
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ReplyDeleteबहुत सुंदर
अति सुन्दर ..
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति सुन्दर भाव
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