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Sunday, January 18, 2015

अच्छे दिन :



अच्छे दिन :
कब लौटेंगे  यारों अपने  , बचपन वाले अच्छे दिन
छईं-छपाक, कागज़ की कश्ती, सावन वाले अच्छे दिन 

गिल्ली-डंडा, लट्टू चकरी , छुवा-छुवौवल, लुकाछिपी
तुलसी-चौरा, गोबर लीपे आँगन वाले अच्छे दिन 

हाफ-पैंट, कपड़े का बस्ता, स्याही की दावात, कलम
शाला की छुट्टी की घंटी, टन-टन वाले अच्छे दिन
 
मोटी रोटी, दाल-भात में देशी घी अपने घर का
नन्हा-पाटा, फुलकाँसे के बरतन वाले अच्छे दिन 

बचपन बीता, सजग हुये कुछ और सँवरना सीख गये
मन को भाते, बहुत सुहाते, दरपन वाले अच्छे दिन 

छुपा छुपाकर नाम हथेली पर लिख-लिख कर मिटा दिया
याद करें तो कसक जगाते, यौवन वाले अच्छे दिन 

निपट निगोड़े सपने सारे , नौकरिया ने निगल लिये
वेतन वाले से अच्छे थे, ठन–ठन वाले अच्छे दिन
 
फिर फेरों के फेरे में पड़ , फिरकी जैसे घूम रहे
मजबूरी में कहते फिरते, बन्धन वाले अच्छे दिन 

दावा वादा व्यर्थ तुम्हारा , बहल नहीं हम पायेंगे
क्या दे पाओगे तुम हमको, बचपन वाले अच्छे दिन
 
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (chhattiछत्तीसगढ़)

8 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. क्या दे पाओगे तुम हमको, बचपन वाले अच्छे दिन
    ..वाह! बहुत सुन्दर!
    आपने बचपन के सारे खेल सजीव कर दिए ...

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  3. वो अच्छे दिन तो अब कभी नहीं आएंगे...

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  4. बस यही तो है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा

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  5. बचपन की यादें वो भी आपके अंदाज़ में ... पूरा बचपन चलचित्र की त्तारह गुज़र गया ... बधाई अरुण जी ...

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  6. अब तो वे दिन केवल यादों में ही हैं...यादों को ताज़ा करती बहुत प्रभावी प्रस्तुति...

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  7. बहुत ही शानदार गजल, मन मुग्ध करती हुई

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