अच्छे दिन :
कब लौटेंगे यारों
अपने , बचपन वाले अच्छे दिन
छईं-छपाक, कागज़ की कश्ती, सावन वाले अच्छे दिन
गिल्ली-डंडा, लट्टू चकरी , छुवा-छुवौवल, लुकाछिपी
तुलसी-चौरा, गोबर लीपे आँगन वाले अच्छे दिन
हाफ-पैंट, कपड़े का बस्ता, स्याही की दावात, कलम
शाला की छुट्टी की घंटी, टन-टन वाले अच्छे दिन
मोटी रोटी, दाल-भात में देशी घी अपने घर का
नन्हा-पाटा, फुलकाँसे के बरतन वाले अच्छे दिन
बचपन बीता, सजग हुये कुछ और सँवरना सीख गये
मन को भाते, बहुत सुहाते, दरपन वाले अच्छे दिन
छुपा छुपाकर नाम हथेली पर लिख-लिख कर मिटा दिया
याद करें तो कसक जगाते, यौवन वाले अच्छे दिन
निपट निगोड़े सपने सारे , नौकरिया ने निगल लिये
वेतन वाले से अच्छे थे, ठन–ठन वाले अच्छे दिन
फिर फेरों के फेरे में पड़ , फिरकी जैसे घूम रहे
मजबूरी में कहते फिरते, बन्धन वाले अच्छे दिन
दावा वादा व्यर्थ तुम्हारा , बहल नहीं हम पायेंगे
क्या दे पाओगे तुम हमको, बचपन वाले अच्छे दिन
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (chhattiछत्तीसगढ़)
सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (19-01-2015) को ""आसमान में यदि घर होता..." (चर्चा - 1863) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
क्या दे पाओगे तुम हमको, बचपन वाले अच्छे दिन
ReplyDelete..वाह! बहुत सुन्दर!
आपने बचपन के सारे खेल सजीव कर दिए ...
वो अच्छे दिन तो अब कभी नहीं आएंगे...
ReplyDeleteअच्छे दिन तो अब सपने में हैं \
ReplyDeleteतमन्ना इंसान की ......
बस यही तो है ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा
ReplyDeleteबचपन की यादें वो भी आपके अंदाज़ में ... पूरा बचपन चलचित्र की त्तारह गुज़र गया ... बधाई अरुण जी ...
ReplyDeleteअब तो वे दिन केवल यादों में ही हैं...यादों को ताज़ा करती बहुत प्रभावी प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत ही शानदार गजल, मन मुग्ध करती हुई
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