(चित्र गूगल से साभार)
कुण्डलिया छंद :
सुविधा ने सुख छीन कर , बाँट दिया परिवार
बड़ी हुई अट्टालिका
, बंद हो गये द्वार
बंद हो गये
द्वार ,
रखें दीवारें
कटुता
नींव सिसकती मौन , मिटी रिश्तों की मधुता
पसरा हुआ तनाव , निगलती पग-पग दुविधा
क्या सुख का पर्याय,कभी बन सकती सुविधा
?????
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग़ (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट, विजयनगर, जबलपुर (मध्यप्रदेश)
सुविधा के ही नाम पर, पला मन में स्वार्थ
ReplyDeleteघर के झगड़े मिटे नहीं , करते हैं परमार्थ
करते हैं परमार्थ , मन में कटुता पालें
कैसे हों फल फूल , जब जड़ में मट्ठा डालें
मर्यादा न रिश्तों की , मन में आई दुविधा
प्रेम का पाठ भूल , देखें अपनी सुविधा ।
सच को कहती अच्छी कुंडली ।
समय के साथ बदला है पारिवारिक माहौल और रिश्ते भी ......सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteआज इस बदलते माहौल में बहुत कु्छ बदल रहा है..्सुन्दर भाव..
ReplyDeleteकुण्डलिया और घनाक्षरी छंद को लिखते वक़्त उन की अंतिम पंक्ति पर ही सारा दारोमदार रहता है। बहुत से लोग इस पर ग़ौर करना ही नहीं चाहते, पर आप ने इसी ख़ूबी के साथ इस कुण्डलिया छन्द में चार-चाँद लगा दिये हैं। बहुत ख़ूब।
ReplyDeleteछंद के माध्यम से दिल की बात कह दी आपने ...
ReplyDeleteपरिवारों को बाँट के रख दिया है इस सुविधा नामक मन्त्र ने ....
मंगलवार 21/05/2013 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं ....
ReplyDeleteआपके सुझावों का स्वागत है ....
धन्यवाद !!
परिवार के बिखराव पर सार्थक कुण्डलियाँ
ReplyDeleteसुंदर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
बधाई
आग्रह है पढ़ें "बूंद-"
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत सुन्दर सामयिक कुण्डलियाँ !
ReplyDeleteअनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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कोई समझता कहाँ है ये..
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