
- कुण्डलिया छंद -
चम-चम चमके गागरी,चिल-चिल चिलके धूप
नीर भरन की चाह में , झुलसा जाये रूप
झुलसा जाये रूप , कहाँ से लाये पानी
सूखे जल के स्त्रोत , नजर आती वीरानी
दोहन – अपव्यय देख , रूठता जाता मौसम
धरती ना बन जाय , गागरी रीती चम-चम ||अरुण कुमार निगम
अदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्टमेंट,विजय नगर,जबलपुर(मध्यप्रदेश)
बहुत सुंदर .... चित्र के भाव पूरी तरह से समाहित हैं ।
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भाव,आभार.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
ReplyDeletesundar abhivykti!
ReplyDeleteआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २ १ / ५ /१ ३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
ReplyDeleteवाह आदरणीय गुरुदेव श्री वाह अति सुन्दर लाजवाब. आपकी यह रचना कल मंगलवार (21 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण अंक - २ पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसार्थक चिंतनशील; प्रस्तुति
ReplyDeleteped lagana jaruri hai ....satik shabd chitran ....
ReplyDeleteसार्थक प्रस्तुति...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुभम अरुण sir
ReplyDeleteलाजवाब कुण्डलियाँ
झुलसा जाये रूप , कहाँ से लाये पानी
ReplyDeleteसूखे जल के स्त्रोत , नजर आती वीरानी ..
चित्र को सार्थक करती हैं ये कुण्डलियाँ ... सुन्दर छंद ...
बढ़िया कुण्डली |
ReplyDeleteआशा
आदरणीय आपकी यह कलापूर्ण रचना निर्झर टाइम्स पर 'विधाओं की बहार...' में संकलित की गई है।
ReplyDeleteकृपया http://nirjhar.times.blogspot.com पर अवलोकन करें।आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित है।
सादर
चित्र, भाव... अभी के मौसम का पूरा चित्रण करते हुए...
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति!
~सादर!!!
लाजवाब..
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