चंदा- मामा पुए पकाए , प्राणप्रिये
बचपन में हर बच्चा खाये ,प्राणप्रिये |
दूध - कटोरी डाल बताशा अम्मा जी
लल्ला लल्ला लोरी गाये ,प्राणप्रिये |
तरुणाई की अरुणाई दृग में उतरी
हर सूरत में चाँद दिखाये प्राणप्रिये |
सजनी लिखती मन की पाती मेंहदी से
चंदा साजन तक पहुँचाये प्राणप्रिये |
दम भर चंदा इधर,उधर मुँह फेर थका
नर्गिस ने क्या राज सुनाये प्राणप्रिये |
दो - दो चाँद खिले हैं ,एक है बदली में
दूजा , घूँघट में शरमाये प्राणप्रिये |
नून-तेल का चक्कर जब सिर पर छाया
चाँद नजर रोटी में आये प्राणप्रिये |
दाग दिखाई देते हैं अब चंदा में
मांगने जब कोई चंदा आये प्राणप्रिये |
चमक उठी है चाँद, हटा कर केश घटा
अकलमंद अब हम कहलाये प्राणप्रिये |
अब भी हो तुम चाँद न यूँ छेड़ो मुझको
फिर आंगन दो चाँद समाये प्राणप्रिये |
चंदा - तारे , साथ छोड़ परदेस गये
तन्हा रह गये, सपन सजाये प्राणप्रिये |
चाँद – सरीखी वृद्धावस्था रोती है
अब आँखों को चाँद न भाये प्राणप्रिये |
अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्ट्मेंट, विजय नगर
जबलपुर (म.प्र.)
(ओपन बुक्स ऑन लाइन महाउत्सव में सम्मिलित रचना)
बहुत सी यादें ताजी करती कविता |
ReplyDelete"नून तेल लकड़ी का चक्कर जब सर पर छाया
चाँद रोटी में नजर आए प्राणप्रिये "
ध्यान योग्य पंक्ति लगी |
आशा
उत्कृष्ट प्रस्तुति सोमवार के चर्चा मंच पर ।।
ReplyDeleteदम भर चंदा इधर,उधर मुँह फेर थका
ReplyDeleteनर्गिस ने क्या राज सुनाये प्राणप्रिये |
दो - दो चाँद खिले हैं ,एक है बदली में
दूजा , घूँघट में शरमाये प्राणप्रिये |
बहुत ही भावना से ओत -प्रोत बहुत ही शानदार शब्दों में लिखी शानदार प्रस्तुति /बहुत बधाई आपको /
मेरे ब्लॉग में आपका स्वागत है /जरुर पधारें /
तरुणाई की अरुणाई दृग में उतरी
ReplyDeleteहर सूरत में चाँद दिखाये प्राणप्रिये |
सजनी लिखती मन की पाती मेंहदी से
चंदा साजन तक पहुँचाये प्राणप्रिये ,,,,
बहुत शानदार भावों से पूर्ण सुन्दर पंक्तियाँ ,,,,,,अरुण जी बहुत२ बधाई ,,,,,
RECENT POST ...: पांच सौ के नोट में.....
सुन्दर...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर....
सादर
अनु
चंदा - तारे , साथ छोड़ परदेस गये
ReplyDeleteतन्हा रह गये, सपन सजाये प्राणप्रिये |
चाँद – सरीखी वृद्धावस्था रोती है
अब आँखों को चाँद न भाये प्राणप्रिये |...वाह: बहुत सुन्दर रचना..आभार..
वक्त के साथ बदली चाँद की परिभाषा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
:-)
बहुत शानदार बधाई ........
ReplyDeleteभाव व्यंजना माधुर्य से एक कदम आगे निकल के व्यंग्य रस और फिर चंदा का यमक /स्लेषार्थ अरुण कुमार ही पैदा कर सकतें हैं .गा गा गीत सुलाजा अब तो प्राण प्रिय ....लोरी तुझे बुलाये अब तो प्राण प्रिय ...चंदा भी थक के सो जाए प्राण प्रिय ...ऐसी एक सुनादे अब तो तान प्रिय ....कृपया यहाँ भी पधारें -
ReplyDeleteशनिवार, 11 अगस्त 2012
कंधों , बाजू और हाथों की तकलीफों के लिए भी है का -इरो -प्रेक्टिक
चाँद , उमर के साथ दिखाये , प्राणप्रिये
ReplyDeleteअरुण कुमार निगम (हिंदी कवितायेँ)
हरदम आकर धूम मचाये मनमौजी |
चमचे से ही हलुवा खाए मनमौजी |
तिरछे चितवन की चोरी न पकड़ी जाये-
चुपके से झट दायें बाएं मनमौजी |
चंदा सारी रात ताकता निश्चर हरकत -
चंदा मोटा हिस्सा पाए मनमौजी |
फिजा गई सड़ गल कर छोड़ी यह दुनिया-
चाँद आज भी मौज मनाये मनमौजी ||
शीतलता से दे रहा, मन को शान्ति अपार।
ReplyDeleteइसी लिए तो कर रहे, चन्दा से सब प्यार।।
वाह ... बेहतरीन
ReplyDeleteचाँद – सरीखी वृद्धावस्था रोती है
ReplyDeleteअब आँखों को चाँद न भाये प्राणप्रिये ..
कहाँ से कहाँ ले गए ... लाजवाब अरुण जी ... प्रभावी अंदाज़ से लाजवाब अभिव्यक्ति ...
चंदा - तारे , साथ छोड़ परदेस गये
ReplyDeleteतन्हा रह गये, सपन सजाये प्राणप्रिये |
चाँद – सरीखी वृद्धावस्था रोती है
अब आँखों को चाँद न भाये प्राणप्रिये |...वाह: बहुत भावपूर्ण रचना..आभार
समय के साथ परिस्थितियाँ बदलती हैं, सोच बदलती हैं ..
ReplyDeleteसार्थक रचना !
चंदा - तारे , साथ छोड़ परदेस गये
ReplyDeleteतन्हा रह गये, सपन सजाये प्राणप्रिये |
चाँद – सरीखी वृद्धावस्था रोती है
अब आँखों को चाँद न भाये प्राणप्रिये |
हाँ अरुण जी समय रुकता कहाँ है हाथ नहीं आता एक दिन सब कुछ बदल ही जाता है
भ्रमर ५
wah bato bato me apne poora drishy hi prastut kr diya .....lajbab rachana ke liye badhai nigam ji
ReplyDeleteसमय के साथ साथ चाँद का बदलता रूप...बेहतरीन रचना !!
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