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Thursday, August 30, 2012

मालती सवैया – चंद्रमा की पीर..........


 

(चित्र ओबीओ से साभार) 

(1)

पीर सुमीर न जान सकै, पहचान सकै मन भाव न कोई
देह  लखै  अरु  रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई
वा  जननी  धरनी सुमिरै , पहुँचाय उसे बिनद्राबन कोई
माइ जसोमति सी धरनी , ममता धरि नैनन सावन रोई ||

(2)

पूनम  रात  उठैं  लहरें , ममता  हिय  हाय  हिलोर मचावै
हूक  उठै , सुत चंद्र  दिखै,सरसै सरि सागर सोर मचावै
माइ  कहै  सुत हाँस सदा,दुनियाँ भर में चितचोर कहावै
चंद्र कहै  मुख हाँसत है , मन पीर सदा  मनमोर  मचावै ||


अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्ट्मेंट, विजय नगर
जबलपुर (म.प्र.)


(ओपन बुक्स ऑन लाइन महाउत्सव में सम्मिलित रचना)

18 comments:

  1. बहुत सुंदर .... मालती सवैया की जानकारी भी दीजिये ...

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    1. मत्तगयंद (मालती) सवैया ‌‌- इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण ( SII) और अंत में दो गुरु (SS) होते हैं. कुल मिला के 23 वर्ण होते हैं. जैसे -
      धूरि भरे अति सोभित स्यामजु तैसि बनी सिर सुंदर चोटी |
      SI IS II SII S II SI IS II SII SS (7 भगण,अंत में 2 गुरु)

      उसी तरह से -
      पीर सुमीर न जान सकै पहचान सकै मन भावन कोई |
      SI ISI I SI IS IISI IS II SII SS (7 भगण,अंत में 2 गुरु)

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    2. वाह....
      आभार इस जानकारी के लिए..
      सादर
      अनु

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    3. मत्तगयंद सवैया ही मालती सवैया है यह मेरी जानकारी में नहीं था या हो सकता है की भूल ही गयी हूँ ... बहुत अरसा हो गया न पढे हुये ... आभार

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  2. बहुत खूबशूरत पंक्तियाँ बन पड़ी है,निगम जी इस रचना के लिए बधाई,,,,,

    MY RECENT POST ...: जख्म,,,

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  3. चंद्र कहै मुख हाँसत है , मन पीर सदा मनमोर मचावै ||

    बहुत बढ़िया सर!

    सादर

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  4. वाह...
    बहुत खूबसूरत...

    सादर
    anu

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  5. वाह: बहुत बढ़िया..आभार अरुण जी..

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  6. देह लखै अरु रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई

    बहुत खूबशूरत पंक्तियाँ

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  7. कल 02/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. बहुत बढ़िया. अरुण जी..

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  9. देह लखै अरु रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई

    bahut sundar

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  10. बहुत बढ़िया मालती सवैया
    आभार

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  11. बहुत बढ़िया सर जी...
    अति उत्तम कृति....
    :-)

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  12. पूनम रात उठैं लहरें , ममता हिय हाय हिलोर मचावै
    हूक उठै , सुत चंद्र दिखै,सरसै सरि सागर सोर मचावै ...

    वाह भाव विहोर कर गयी ये पंक्तियाँ ... आनंद का सागर चालक जाता है इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद ... लाजवाब अरुण जी ...

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