(चित्र ओबीओ से साभार)
(1)
पीर सुमीर न जान सकै, पहचान सकै मन भाव न कोई
देह लखै अरु
रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई
वा जननी धरनी सुमिरै , पहुँचाय उसे बिनद्राबन कोई
माइ जसोमति सी धरनी , ममता धरि नैनन सावन रोई ||
(2)
पूनम रात उठैं लहरें , ममता हिय हाय हिलोर मचावै
हूक उठै , सुत चंद्र दिखै,सरसै सरि
सागर सोर मचावै
माइ कहै सुत हाँस सदा,दुनियाँ भर में चितचोर कहावै
चंद्र कहै मुख हाँसत है , मन पीर सदा मनमोर मचावै ||
अरुण कुमार निगम
आदित्यनगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शम्भूश्री अपार्ट्मेंट, विजय नगर
जबलपुर (म.प्र.)
(ओपन
बुक्स ऑन लाइन महाउत्सव में सम्मिलित रचना)
बहुत सुंदर .... मालती सवैया की जानकारी भी दीजिये ...
ReplyDeleteमत्तगयंद (मालती) सवैया - इसके प्रत्येक चरण में 7 भगण ( SII) और अंत में दो गुरु (SS) होते हैं. कुल मिला के 23 वर्ण होते हैं. जैसे -
Deleteधूरि भरे अति सोभित स्यामजु तैसि बनी सिर सुंदर चोटी |
SI IS II SII S II SI IS II SII SS (7 भगण,अंत में 2 गुरु)
उसी तरह से -
पीर सुमीर न जान सकै पहचान सकै मन भावन कोई |
SI ISI I SI IS IISI IS II SII SS (7 भगण,अंत में 2 गुरु)
वाह....
Deleteआभार इस जानकारी के लिए..
सादर
अनु
मत्तगयंद सवैया ही मालती सवैया है यह मेरी जानकारी में नहीं था या हो सकता है की भूल ही गयी हूँ ... बहुत अरसा हो गया न पढे हुये ... आभार
Deleteबहुत खूबशूरत पंक्तियाँ बन पड़ी है,निगम जी इस रचना के लिए बधाई,,,,,
ReplyDeleteMY RECENT POST ...: जख्म,,,
वाह
ReplyDeleteचंद्र कहै मुख हाँसत है , मन पीर सदा मनमोर मचावै ||
ReplyDeleteबहुत बढ़िया सर!
सादर
बहुत बढ़िया ...
ReplyDeleteवाह...
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत...
सादर
anu
वाह: बहुत बढ़िया..आभार अरुण जी..
ReplyDeleteदेह लखै अरु रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई
ReplyDeleteबहुत खूबशूरत पंक्तियाँ
कल 02/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
wah wah bahut badhiya arun ji aapki lekhni bahut prakhar hai.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया. अरुण जी..
ReplyDeleteदेह लखै अरु रूप चखै, उपमान कहै मन-भावन कोई
ReplyDeletebahut sundar
बहुत बढ़िया मालती सवैया
ReplyDeleteआभार
बहुत बढ़िया सर जी...
ReplyDeleteअति उत्तम कृति....
:-)
पूनम रात उठैं लहरें , ममता हिय हाय हिलोर मचावै
ReplyDeleteहूक उठै , सुत चंद्र दिखै,सरसै सरि सागर सोर मचावै ...
वाह भाव विहोर कर गयी ये पंक्तियाँ ... आनंद का सागर चालक जाता है इन पंक्तियों को पढ़ने के बाद ... लाजवाब अरुण जी ...