Followers

Thursday, June 28, 2012

फिफ्टी-फिफ्टी हास्य गज़ल.................


कच्ची रोटी भी प्रेमिका की भली लगती है
बीबी अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है.

बीबी हँस दे तो कलेजा ही दहल जाता है
प्रेयसी रूठी हुई  भी तो  भली लगती है .

नये नये में बहु कितनी भली लगती है
फिर ससुर सास को वो बाहुबली लगती है.

कली अनार की लगती थी ब्याह से पहले
अब मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है.

फिर चुनी जायेगी दीवार में पहले की तरह
ये मोहब्बत सदा अनारकली लगती है.

इस शहर के सभी आशिक हैं परेशान बहुत
फिर कहीं तेरी मेरी बात चली लगती है.

रेल की बोगी को बैलों से खींच कर लालू
बोले लोकल भी अब गीतांजलि लगती है.

जिंस और टॉप ,कटे बाल, ऊँची सैंडल में
छोरी हमको तो फकत मसक्कली लगती है.

फिर युधिष्ठिर नजर आया है जुआखाने में
किसी शकुनि ने नई चाल चली लगती है.

सूर रसखान घनानंद औ केशव तुलसी
गोद में कविता इन सबकी, पली लगती है.

एक ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
सबकी किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है.


अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

28 comments:

  1. यह मिश्रण एक नया स्वाद दे रहा है - बढ़िया !

    ReplyDelete
  2. Replies
    1. जबरदस्त यह शायरी, तेज धार सरकार ।

      सावधान रहिये जरा, करवाएगी मार ।

      Delete
    2. करवाएगी मार अगर पढ़ लेगी बीबी,
      भूखा रहना पडेगा,हो जायेगी टी०वी०
      खुश रक्खो, दिलवाओ झुमके बाली.
      तभी बनोगे तुलसी और वो रत्नावली,,,,

      MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,

      Delete
    3. सहने की आदत पड़ी, साल हुवे अब तीस |
      नीले नीले हैं निशाँ, उठे नहीं पर टीस |
      उठे नहीं पर टीस, दूसरे तुलसी लागैं |
      रचनाएं सब बीस, वीक में सीधे भागैं |
      शनी और इतवार, बड़ी होती है खातिर |
      रत्ना खातिर गिफ्ट, किन्तु रत्ना तो शातिर ||

      Delete
    4. हँसते गाते हो गये , साल मित्रवर तीस
      हमने ये जाना नहीं ,क्या होता छत्तीस
      क्या होता छत्तीस,सदा तिरसठ को जाना
      आज भी लब पर है,यहाँ पर प्रेम तराना
      गंगा जमुना संगम पर क्यों आग लगाते
      साल मित्रवर तीस, हो गये हँसते गाते ||

      Delete
    5. सिर्फ लबों पर आपके लाने को मुस्कान
      फिफ्टी फिफ्टी हास्य की गज़ल लिखी श्रीमान |

      Delete
  3. एक ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
    सबकी किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है.
    वाह ... बहुत खूब ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
  4. बहुत खूब ! मजेदार प्रस्तुति...

    ReplyDelete
  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति!

    इस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!

    सूचनार्थ!

    ReplyDelete
  6. कली अनार की लगती थी ब्याह से पहले
    अब मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है.
    नये नये में बहु कितनी भली लगती है
    फिर ससुर सास को वो बाहुबली लगती है.

    मजाक मजाक में हकीकत कह दी है आपने ,
    ये वधु पुत्र अब अम्मा, सबकी लगती है .
    वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ ,१८८

    ReplyDelete
  7. बहुत मजेदार प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  8. हा हा हा हा हा , बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  9. फिफ्टी-फिफ्टी हास्य गज़ल.: आज के एस दौर मे जहाँ लोग सारी समस्या पे तो लिख देते हैं लेकिन हास्य को छोड़ के जैसे कोई परित्कता विधवा हो आजादी के पहले कि जो कभी एक सुन्दर बहु हुआ करती थी, उसमे यदि आप जैसे कुछ हास्य लेखक जिनकी रचनाये पढ़ गुदगुदी होती हो निश्चय ही बिमारी का डाक्टर साबित होते हैं, बिमारी है हँसी का लोप, आजकल हसना और हसाना सबसे दुष्कर कार्य हो गया है , ऐसा नहीं कि लोग नहीं हसते, हँसते हैं, लेकिन दूसरों पे , उनकी मजबूरियों पे , देश पे समाज, और इस प्रकार कि हँसी निश्चय ही घातक है,
    बहुत बहुत बधाई अरुण जी

    ReplyDelete
  10. awesome humor..
    i was laughing throughout !!!

    ReplyDelete
  11. वाह...मजा आ गया....मैंने आपकी इस ग़ज़ल को अपने आई डी से फेस बुक पर शेयर किया है....आभार....

    ReplyDelete
  12. आज जाना कि गज़ल हँसी भी पैदा करती है.

    ...आप अपने यही भाव गंभीर गज़ल में लें आयें तो सच में मार-काट हो जाए !

    ReplyDelete
  13. फिफ़्टी फिफ़्टी हास्य में कह दी गहरी बात
    जो कर लेता अनुभव वही सहे आघात ।

    खूबसूरत गजल

    ReplyDelete
  14. एक ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
    सबकी किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है।

    क्या बात है !
    कमाल की चीज़ लिखी है आपने।

    ReplyDelete
  15. वाह.....
    बहुत ही अच्छा ....
    मजेदार.....
    :-)

    ReplyDelete
  16. हास्य ग़ज़ल अपने मकसद में कामयाबः)

    ReplyDelete
  17. वाह.....
    लेकिन ये घंटी कैसी बज रही है....???:)))))

    सादर

    ReplyDelete
  18. क्या बात है अरुण जी ....जबरदस्त शायरी

    ReplyDelete
  19. वाह अतिसुन्दर ! व्यंग भी मजेदार ! ढेरो बधाई

    ReplyDelete