कच्ची रोटी भी प्रेमिका की भली लगती है
बीबी
अच्छी भी खिलाये तो जली लगती है.
बीबी
हँस दे तो कलेजा ही दहल जाता है
प्रेयसी
रूठी हुई भी तो भली लगती है .
नये
नये में बहु कितनी भली लगती है
फिर
ससुर सास को वो बाहुबली लगती है.
कली
अनार की लगती थी ब्याह से पहले
अब
मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है.
फिर
चुनी जायेगी दीवार में पहले की तरह
ये
मोहब्बत सदा अनारकली लगती है.
इस
शहर के सभी आशिक हैं परेशान बहुत
फिर
कहीं तेरी मेरी बात चली लगती है.
रेल
की बोगी को बैलों से खींच कर लालू
बोले
लोकल भी अब गीतांजलि लगती है.
जिंस
और टॉप ,कटे बाल, ऊँची सैंडल में
छोरी
हमको तो फकत मसक्कली लगती है.
फिर
युधिष्ठिर नजर आया है जुआखाने में
किसी
शकुनि ने नई चाल चली लगती है.
सूर
रसखान घनानंद औ’ केशव तुलसी
गोद
में कविता इन सबकी, पली लगती है.
एक
ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
सबकी
किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है.
अरुण
कुमार निगम
आदित्य
नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
विजय
नगर, जबलपुर (म.प्र.)
Badhiya Hasy Gazal.....
ReplyDeleteयह मिश्रण एक नया स्वाद दे रहा है - बढ़िया !
ReplyDeleteसुन्दर ।
ReplyDeleteजबरदस्त यह शायरी, तेज धार सरकार ।
Deleteसावधान रहिये जरा, करवाएगी मार ।
करवाएगी मार अगर पढ़ लेगी बीबी,
Deleteभूखा रहना पडेगा,हो जायेगी टी०वी०
खुश रक्खो, दिलवाओ झुमके बाली.
तभी बनोगे तुलसी और वो रत्नावली,,,,
MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: बहुत बहुत आभार ,,
सहने की आदत पड़ी, साल हुवे अब तीस |
Deleteनीले नीले हैं निशाँ, उठे नहीं पर टीस |
उठे नहीं पर टीस, दूसरे तुलसी लागैं |
रचनाएं सब बीस, वीक में सीधे भागैं |
शनी और इतवार, बड़ी होती है खातिर |
रत्ना खातिर गिफ्ट, किन्तु रत्ना तो शातिर ||
हँसते गाते हो गये , साल मित्रवर तीस
Deleteहमने ये जाना नहीं ,क्या होता छत्तीस
क्या होता छत्तीस,सदा तिरसठ को जाना
आज भी लब पर है,यहाँ पर प्रेम तराना
गंगा जमुना संगम पर क्यों आग लगाते
साल मित्रवर तीस, हो गये हँसते गाते ||
सिर्फ लबों पर आपके लाने को मुस्कान
Deleteफिफ्टी फिफ्टी हास्य की गज़ल लिखी श्रीमान |
एक ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
ReplyDeleteसबकी किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है.
वाह ... बहुत खूब ... उत्कृष्ट प्रस्तुति
हाहाहा मस्त
ReplyDeleteबहुत खूब ! मजेदार प्रस्तुति...
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति!
ReplyDeleteइस प्रविष्टी की चर्चा शुक्रवारीय के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कली अनार की लगती थी ब्याह से पहले
ReplyDeleteअब मैं कीड़ा हूँ और वो छिपकली लगती है.
नये नये में बहु कितनी भली लगती है
फिर ससुर सास को वो बाहुबली लगती है.
मजाक मजाक में हकीकत कह दी है आपने ,
ये वधु पुत्र अब अम्मा, सबकी लगती है .
वीरुभाई ,४३,३०९ ,सिल्वर वुड ड्राइव ,कैंटन ,मिशिगन ४८ ,१८८
बहुत मजेदार प्रस्तुति..
ReplyDeleteहा हा हा हा हा , बहुत बढ़िया
ReplyDeleteफिफ्टी-फिफ्टी हास्य गज़ल.: आज के एस दौर मे जहाँ लोग सारी समस्या पे तो लिख देते हैं लेकिन हास्य को छोड़ के जैसे कोई परित्कता विधवा हो आजादी के पहले कि जो कभी एक सुन्दर बहु हुआ करती थी, उसमे यदि आप जैसे कुछ हास्य लेखक जिनकी रचनाये पढ़ गुदगुदी होती हो निश्चय ही बिमारी का डाक्टर साबित होते हैं, बिमारी है हँसी का लोप, आजकल हसना और हसाना सबसे दुष्कर कार्य हो गया है , ऐसा नहीं कि लोग नहीं हसते, हँसते हैं, लेकिन दूसरों पे , उनकी मजबूरियों पे , देश पे समाज, और इस प्रकार कि हँसी निश्चय ही घातक है,
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई अरुण जी
awesome humor..
ReplyDeletei was laughing throughout !!!
वाह...मजा आ गया....मैंने आपकी इस ग़ज़ल को अपने आई डी से फेस बुक पर शेयर किया है....आभार....
ReplyDeleteआज जाना कि गज़ल हँसी भी पैदा करती है.
ReplyDelete...आप अपने यही भाव गंभीर गज़ल में लें आयें तो सच में मार-काट हो जाए !
फिफ़्टी फिफ़्टी हास्य में कह दी गहरी बात
ReplyDeleteजो कर लेता अनुभव वही सहे आघात ।
खूबसूरत गजल
behtreen mazedaar .....
ReplyDeleteएक ही तुलसी जनम लेता है इस दुनियाँ में
ReplyDeleteसबकी किस्मत में कहाँ रत्नावली लगती है।
क्या बात है !
कमाल की चीज़ लिखी है आपने।
वाह.....
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा ....
मजेदार.....
:-)
हास्य ग़ज़ल अपने मकसद में कामयाबः)
ReplyDeleteवाह.....
ReplyDeleteलेकिन ये घंटी कैसी बज रही है....???:)))))
सादर
bahut achcha ..
ReplyDeleteक्या बात है अरुण जी ....जबरदस्त शायरी
ReplyDeleteवाह अतिसुन्दर ! व्यंग भी मजेदार ! ढेरो बधाई
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