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Saturday, January 14, 2012

लगा कर देख ले नादां...........


ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.

कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
गुलाबों की महक आती है,  मेहनत के पसीने से.

कहीं उलझे हुए रिश्ते,  कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.

ये दौलत दरिया जादू का, पियो तो प्यास बढ़ती है
हमारी प्यास बुझती है  ,  पराये अश्क पीने से.

सभी कुछ पा लिया तूने, सुकूनेदिल नहीं पाया
लगा कर देख ले नादां कभी हमको भी सीने से.

(ओ.बी.ओ.तरही मुशायरा में शामिल)

अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग  (छत्तीसगढ़)
विजय नगर, जबलपुर (म.प्र.)

22 comments:

  1. बहुत खूब ...
    शुभकामनायें आपको !

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  2. ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
    जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से... बेजोड़ , क्या बात कही है !

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    1. सुन्दर सार्थक पोस्ट, आभार.

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  3. कहीं उलझे हुए रिश्ते, कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
    सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.
    बहुत खूब ....
    मुबारक काबुल करें |
    शुभकामनाएँ!

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी

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  5. वाह!!!
    बहुत सुन्दर..
    सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से....
    लाजवाब.

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  6. वाह!!!!!अरुण जी क्या बात है
    बहुत अच्छी सुंदर प्रस्तुति,बढ़िया अभिव्यक्ति रचना अच्छी लगी.....
    new post--काव्यान्जलि : हमदर्द.....
    समर्थक बन गया हूँ आप भी भी फालो करे तो मुझे हार्दिक खुशी होगी,....

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  7. कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
    गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से

    सुंदर अभिव्यक्ति

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  8. बेहतरीन पोस्ट।


    सादर

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  9. her panktiyan mashha -allah
    कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
    गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.
    bahut -bahut hi behatreen
    badhai
    poonam

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  10. वाह अरुण जी क्या बात है ... बहुत खूब लिखा है आपने ...समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/
    http://mhare-anubhav.blogspot.com/

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  11. ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
    जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.भावों से नाजुक शब्‍द......बेजोड़ भावाभियक्ति....

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  12. bhaut hi acchi gazal kahi arun ji.... dil ko chu gayi panktiya.....

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  13. बढ़िया प्रस्तुति...
    आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 16-01-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ

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  14. ना है मंझधार, ना तूफां, मजा क्या ऐसे जीने से.
    जिन्हें साहिल की हसरत हो, उतर जाये सफीने से.

    हर एक शेर बेजोड है और कोई भी दाद दिए बिना नहीं रह सकता.

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  15. आदरणीय पाबला जी और अशोक सलूजा जी का आभार जो नाट स्पैम का रास्ता बताया.

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  16. कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
    गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.

    शानदार ग़ज़ल।
    श्रम को कथ्य बनाता यह शेर अच्छा लगा।

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  17. बहुत ही सार्थक व सटीक लेखन| मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ|

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  18. MAN GAYE NIGAM SAHAB APKA YE SHER TO LAKH TAKE KA NIKALA ............कहीं उलझे हुए रिश्ते, कहीं ज़ुल्फों में खम देखे
    सुलझ जाती हैं गाँठें सब, जो सुलझायें करीने से.

    BAHUT BAHUT ABHAR KE SATH HI POORI GAZAL KE LIYE HARDI BADHAI .

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  19. ज़िन्दगी की उलझनों को रूपायित करती हल समझाती रचना .

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  20. कहाँ कोई गुल चढ़ाता है , ये पत्थर की खदानें हैं
    गुलाबों की महक आती है, मेहनत के पसीने से.


    वाह बहुत खूबसूरत गज़ल .

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  21. बेहतरीन,लाजबाब.
    आपका लेखन गजब का है.
    आभार अरुण जी.

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