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Saturday, July 31, 2021

किसी दरबार में जा के गजल हम कह नहीं पाये

                            ग़ज़ल


सियासतदां की सोहबत में कभी हम रह नहीं पाये

किसी दरबार में जा के गजल हम कह नहीं पाये।


भले दिखने में हैं इक खंडहर दुनिया की नजरों में

गमों के जलजले आये मगर हम ढह नहीं पाये।


कभी खूं से कभी अश्कों से लिख देते हैं अपना ग़म

मगर लफ़्ज़ों की ऐय्याशी कभी हम सह नहीं पाये।


हमारा नाम देखोगे हमेशा हाशिये में तुम

है कारण एक, राजा की कभी हम शह नहीं पाये।


हमारे दिल की गहराई में मोती का खजाना है

किनारे तैरने वाले हमारी तह नहीं पाये।


हमारे भी तो सीने में धड़कता है "अरुण" इक दिल

मगर जज़्बात की रौ में कभी हम बह नहीं पाये।


- अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर दुर्ग छत्तीसगढ़

2 comments:

  1. वाह! क्या बात है । बहुत ही अच्छा लगा पढ़कर । हार्दिक बधाई ।

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  2. वाह बहुत उम्दा ग़ज़ल । आपकी खासियत पता चल रही ।

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