"साहित्य और संस्कृति के नगर", "दुर्ग" में "श्री गणेशोत्सव - वर्ष 1961"
आज से ठीक 60 वर्ष पूर्व दुर्ग नगर में नगर पालिका द्वारा संचालित "बैथर्स्ट प्राथमिक शाला" और "नरेरा कन्या शाला" के संयुक्त तत्वाधान में "श्री गणेशोत्सव" का आयोजन किया गया था। इन दोनों ही शालाओं के भवन परस्पर जुड़े हुए हैं तथा शनिचरी बाजार में स्थित हैं। बैथर्स्ट प्राथमिक शाला एक ऐतिहासिक शाला है जिसकी स्थापना सन् 1903 में हुई थी और इस शाला परिसर में सन् 1933 में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी पधारे थे। मुझे भी इसी प्राथमिक शाला में पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त है।
14 सितम्बर 1961 को गणेश चतुर्थी के दिन इसी शाला के परिसर में प्रातः 8 बजे गणेश जी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गयी थी। रात के 9 बजे श्री अजगर प्रसाद जी द्वारा जल-तरंग वादन तथा बाँसुरी वादन प्रस्तुत किया गया था। वैसे श्री अजगर प्रसाद जी का नाम राजनारायण कश्यप था किन्तु शहर और तत्कालीन संगीत जगत के लोग उन्हें अजगर प्रसाद कश्यप के नाम से जानते थे। उन्होंने एक नये वाद्य-यंत्र के रूप में "आरी-तरंग" को स्थापित किया था। श्री अजगर प्रसाद कश्यप जी के बारे में विस्तृत जानकारी फिर कभी पोस्ट करूंगा।
आइये पुनः लौट आते हैं 1961 के गणेशोत्सव की ओर-
15 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे स्थानीय भजन मंडलियों द्वारा भजन प्रस्तुत किये गए थे।
16 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे "सरस्वती कला मंदिर, राजनाँदगाँव" द्वारा सांगीतिक प्रस्तुतियाँ दी गयी थीं।
17 सितम्बर 1961 को रात्रि 9 बजे "मानस-मंडली, दुर्ग द्वारा रामायण-प्रवचन की प्रस्तुति दी गयी थी।
18 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे शाला के बालक-बालिकाओं द्वारा "प्रहसन" प्रस्तुत किये गए थे।
19 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे "जांजगीर के श्री जगदीश चंद्र जी तिवारी" (अभिवक्ता) द्वारा रामायण की प्रस्तुति दी गयी थी।
20 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे पुनः
बालक-बालिकाओं द्वारा प्रहसन प्रस्तुत किये गये थे।
21 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे "विविध मनोरंजन" का कार्यक्रम रखा गया था।
22 सितम्बर 1961 को रात्रि के 9 बजे "झाँकी-प्रदर्शन" का आयोजन हुआ था।
23 सितम्बर 1961 को अपराह्न 3 बजे पारितोषिक वितरण व पान-सुपारी का आयोजन सम्पन्न हुआ था।
इसी दिन रात्रि 8 बजे से रामबन, सतना के पं. श्री रामरक्षित जी शुक्ल द्वारा रामायण-प्रवचन प्रस्तुत किया गया था। जिसके पश्चात विसर्जन हुआ था।
"श्री गणेशोत्सव समारोह" को सुचारू रूप से सम्पन्न करने के लिए "गणेशोत्सव समिति" बनायी गयी थी जिसके प्रधान श्री दीनानाथ नायक थे। स्वागताध्यक्ष श्री कोदूराम "दलित" थे। सुश्री सोनकुँवर बाई ने कोषाध्यक्ष का दायित्व निभाया था। व्यवस्थापक श्री गंगासिंह ठाकुर और सचिव श्री पारखत सिंह ठाकुर थे।
60 वर्ष पूर्व 4 पन्नों में प्रकाशित यह "छोटा सा निमंत्रण पत्र" उस काल-खण्ड का जीता-जागता दस्तावेज है जो प्रमाणित करता है कि उस दौर में शालाओं में सार्वजनिक गणेशोत्सव हुआ करते थे, जिसमें स्थानीय के अलावा अन्य शहरों की विभूतियों द्वारा भी सांस्कृतिक सहयोग प्रदान किया जाता था। शाला के विद्यार्थियों की प्रतिभाओं को भी निखरने के अवसर प्रदान किये जाते थे और सामाजिक समरसता को अक्षुण्ण रखा जाता था, इसीलिए मैंने शीर्षक में दुर्ग नगर को साहित्य और संस्कृति के नगर के विशेषण से अलंकृत किया है।
आप सब को गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएँ।
प्रस्तुतकर्ता - अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)
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