"चंदैनी गोंदा के प्रमुख स्तंभ"
*दाऊ रामचन्द्र देशमुख, खुमानलाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक*
दाऊ रामचंद्र देशमुख की कला यात्रा "देहाती कला विकास मंच", "नरक और सरग", "जन्म और मरण", "काली माटी" आदि के अनुभवों से परिपक्व होती हुई 1971 में चंदैनी गोंदा के जन्म का कारण बनी। "चंदैनी गोंदा" के विचार को जनमानस तक पहुँचाने के लिए सिद्ध-हस्त प्रतिभाओं की खोज जरूरी थी। कला पारखी दाऊ रामचंद्र देशमुख को ऐसी प्रतिभाएँ दुर्लभ संयोग से मिलीं। राजनाँदगाँव में ठाकुर हीरा सिंह गौतम ने लोक संगीत में मर्मज्ञ खुमानलाल साव की सौगात दी। राजनाँदगाँव ने ही कोकिल कंठी कविता हिरकने (अब कविता वासनिक) जैसी प्रतिभा से परिचय कराया तो आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित कविसम्मेलन को सुनकर दाऊ जी की नजर में गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया, आए।
यदि दाऊ रामचन्द्र देशमुख को जौहरी कहा जाए तो खुमान लाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक को नैसर्गिक रत्न कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगा। कितना भी कुशल जौहरी हो, पत्थर को तराश कर रत्न नहीं बना सकता। तराशने के लिए अनगढ़ रत्न की ही जरूरत होती है। रत्न का मूल्य तभी बढ़ता है जब उसे कोई जौहरी तराशे। जौहरी का भी मान तभी बढ़ता है जब वह रत्न को तराश कर उसे कीमती बना दे। इस प्रकार दाऊ रामचन्द्र देशमुख, खुमानलाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक एक दूसरे का सानिध्य पा कर चंदैनी गोंदा के चार प्रमुख स्तंभ बने। ये चारों ही एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। इन चारों स्तंभों पर ही टिकी है चंदैनी गोंदा की गगनचुम्बी इमारत।
दाऊ जी के स्तंभ को उनकी वर्षों की कला यात्रा ने मजबूती दी। खुमान लाल साव के स्तंभ को मजबूती देने वाले गिरिजाशंकर सिन्हा, संतोष टाँक, महेश ठाकुर, पंचराम देवदास रहे। लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत तो उनकी स्वयं की बनाई लय के अनुरूप माधुर्य का भंडार समेटे थे किंतु ताल के अनुरूप लाने का श्रेय दाऊ जी और खुमान लाल साव को जाता है। इन्हीं दोनों की छत्रछाया में कविता वासनिक के सुर जनमानस को बाँधने में कामयाब हुए।
चंदैनी गोंदा की चर्चा हो और कवि रविशंकर शुक्ल, वरिष्ठ गायक व अभिनेता भैयालाल हेड़ाऊ, वरिष्ठ गायिका संगीता चौबे और अनुराग ठाकुर के जिक्र के बिना अधूरी ही रह जायेगी। शिव कुमार दीपक, संतोष झांझी, लीना महापात्र, केदार यादव, साधना यादव को भला कैसे बिसराया जा सकता है। चंदैनी गोंदा में छत्तीसगढ़ के तिरसठ कलाकार हुआ करते थे। रविशंकर शुक्ल और लक्ष्मण मस्तुरिया के साथ ही छत्तीसगढ़ के अनेक गीतकारों, कवियों की रचनाएँ चंदैनी गोंदा के लिए संगीतबद्ध की गई थीं। कोदूराम "दलित", द्वारिकप्रसाद तिवारी "विप्र", हनुमन्त नायडू, हरि ठाकुर, पवन दीवान, हेमनाथ यदु, रामरतन सारथी, रामेश्वर वैष्णव, मुकुंद कौशल आदि कवियों के गीत चंदैनी गोंदा में शामिल थे।
चंदैनी गोंदा का प्रथम प्रदर्शन 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में हुआ था। 1981 तक इसके 99 प्रदर्शन होने में बाद कहा जाता है कि दाऊ जी ने "कारी" के मंचन पर स्वयं को केंद्रित करते हुए अपनी सर्जना "चंदैनी गोंदा" का विसर्जन कर दिया। इसके पश्चात खुमानलाल साव ने स्वतंत्र रूप से चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम) का संचालन जीवन पर्यन्त किया।
चंदैनी गोंदा के विसर्जन के संबंध में एक साक्षात्कार के दौरान वीरेंद्र बहादुर सिंह ने प्रश्न किया था - "कुछ वर्ष पूर्व चंदैनी गोंदा के विसर्जन की खबर भी उड़ी थी, इस पर आपको क्या कहना है ? प्रत्युत्तर में खुमानलाल साव ने कहा था - "यह खबर कुछ विघ्न संतोषियों द्वारा उड़ाई गई थी। चंदैनी गोंदा कोई देव प्रतिमा नहीं है जिसका पूजन के बाद विसर्जन का दिया जाए। जब तक छत्तीसगढ़ के लोगों का स्नेह मिलता रहेगा, चंदैनी गोंदा की अविराम यात्रा जारी रहेगी"। इस उत्तर के अनुरूप चंदैनी गोंदा की अविराम यात्रा आज भी अविराम चल रही है।
जैसा कि ऊपर कहा गया है, खुमानलाल साव ने स्वतंत्र रूप से चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच) का संचालन 1981 से जीवन पर्यन्त करते रहे। दाऊ रामचंद्र देशमुख के जीवन काल में भी इसका मंचन होता रहा है जिससे यह प्रतीत होता है कि दाऊ जी की भी सहमति रही होगी अन्यथा वे आपत्ति जरूर प्रकट करते।
मैं उस पीढ़ी से हूँ जिसे ग्राम बघेरा स्थित दाऊ जी की हवेली में चंदैनी गोंदा में कलाकारों को रिहर्सल करते हुए देखने का सौभाग्य प्राप्त है। मैंने दाऊजी द्वारा सृजित चंदैनी गोंदा के कई मंच रात भर जाग कर देखे हैं। मैंने खुमानलाल साव के संचालन में चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच) की प्रस्तुति देखी है। मुझे कविता वासनिक की कविता यामिनी और अनुराग-धारा
भी देखने का सौभाग्य प्राप्त है। चंदैनी गोंदा की टीम के साथ जबलपुर में जाकर दो आडियो कैसेट्स "मया-मंजरी" और "छत्तीसगढ़ के माटी अंव" की रिकार्डिंग भी करवाई है।
विगत पाँच दशकों से चंदैनी गोंदा को जान-सुन रहा हूँ। मैं सोचता हूँ कि यदि खुमानलाल साव ने चंदैनी-गोंदा का संचालन नहीं किया होता तो मेरे बाद की पीढ़ी "चंदैनी गोंदा" में नाम से अपरिचित ही रह जाती । धन्य हैं खुमानलाल साव जिन्होंने चंदैनी गोंदा को स्मृतियों में खोने नहीं दिया, किन्तु उनके जाने के बाद अब क्या होगा ? क्या चंदैनी गोंदा के कलाकार उसी गरिमा के साथ इसके अस्तित्व को बनाये रख पाएंगे ? या कविता विवेक वासनिक को ही एक नई जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। देखें आने वाला वक्त इन प्रश्नों का क्या उत्तर देता है।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
*दाऊ रामचन्द्र देशमुख, खुमानलाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक*
दाऊ रामचंद्र देशमुख की कला यात्रा "देहाती कला विकास मंच", "नरक और सरग", "जन्म और मरण", "काली माटी" आदि के अनुभवों से परिपक्व होती हुई 1971 में चंदैनी गोंदा के जन्म का कारण बनी। "चंदैनी गोंदा" के विचार को जनमानस तक पहुँचाने के लिए सिद्ध-हस्त प्रतिभाओं की खोज जरूरी थी। कला पारखी दाऊ रामचंद्र देशमुख को ऐसी प्रतिभाएँ दुर्लभ संयोग से मिलीं। राजनाँदगाँव में ठाकुर हीरा सिंह गौतम ने लोक संगीत में मर्मज्ञ खुमानलाल साव की सौगात दी। राजनाँदगाँव ने ही कोकिल कंठी कविता हिरकने (अब कविता वासनिक) जैसी प्रतिभा से परिचय कराया तो आकाशवाणी रायपुर से प्रसारित कविसम्मेलन को सुनकर दाऊ जी की नजर में गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया, आए।
यदि दाऊ रामचन्द्र देशमुख को जौहरी कहा जाए तो खुमान लाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक को नैसर्गिक रत्न कहा जाना अतिशयोक्ति नहीं होगा। कितना भी कुशल जौहरी हो, पत्थर को तराश कर रत्न नहीं बना सकता। तराशने के लिए अनगढ़ रत्न की ही जरूरत होती है। रत्न का मूल्य तभी बढ़ता है जब उसे कोई जौहरी तराशे। जौहरी का भी मान तभी बढ़ता है जब वह रत्न को तराश कर उसे कीमती बना दे। इस प्रकार दाऊ रामचन्द्र देशमुख, खुमानलाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिया और कविता वासनिक एक दूसरे का सानिध्य पा कर चंदैनी गोंदा के चार प्रमुख स्तंभ बने। ये चारों ही एक दूसरे का पर्याय बन चुके हैं। इन चारों स्तंभों पर ही टिकी है चंदैनी गोंदा की गगनचुम्बी इमारत।
दाऊ जी के स्तंभ को उनकी वर्षों की कला यात्रा ने मजबूती दी। खुमान लाल साव के स्तंभ को मजबूती देने वाले गिरिजाशंकर सिन्हा, संतोष टाँक, महेश ठाकुर, पंचराम देवदास रहे। लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत तो उनकी स्वयं की बनाई लय के अनुरूप माधुर्य का भंडार समेटे थे किंतु ताल के अनुरूप लाने का श्रेय दाऊ जी और खुमान लाल साव को जाता है। इन्हीं दोनों की छत्रछाया में कविता वासनिक के सुर जनमानस को बाँधने में कामयाब हुए।
चंदैनी गोंदा की चर्चा हो और कवि रविशंकर शुक्ल, वरिष्ठ गायक व अभिनेता भैयालाल हेड़ाऊ, वरिष्ठ गायिका संगीता चौबे और अनुराग ठाकुर के जिक्र के बिना अधूरी ही रह जायेगी। शिव कुमार दीपक, संतोष झांझी, लीना महापात्र, केदार यादव, साधना यादव को भला कैसे बिसराया जा सकता है। चंदैनी गोंदा में छत्तीसगढ़ के तिरसठ कलाकार हुआ करते थे। रविशंकर शुक्ल और लक्ष्मण मस्तुरिया के साथ ही छत्तीसगढ़ के अनेक गीतकारों, कवियों की रचनाएँ चंदैनी गोंदा के लिए संगीतबद्ध की गई थीं। कोदूराम "दलित", द्वारिकप्रसाद तिवारी "विप्र", हनुमन्त नायडू, हरि ठाकुर, पवन दीवान, हेमनाथ यदु, रामरतन सारथी, रामेश्वर वैष्णव, मुकुंद कौशल आदि कवियों के गीत चंदैनी गोंदा में शामिल थे।
चंदैनी गोंदा का प्रथम प्रदर्शन 07 नवम्बर 1971 को बघेरा में हुआ था। 1981 तक इसके 99 प्रदर्शन होने में बाद कहा जाता है कि दाऊ जी ने "कारी" के मंचन पर स्वयं को केंद्रित करते हुए अपनी सर्जना "चंदैनी गोंदा" का विसर्जन कर दिया। इसके पश्चात खुमानलाल साव ने स्वतंत्र रूप से चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक कार्यक्रम) का संचालन जीवन पर्यन्त किया।
चंदैनी गोंदा के विसर्जन के संबंध में एक साक्षात्कार के दौरान वीरेंद्र बहादुर सिंह ने प्रश्न किया था - "कुछ वर्ष पूर्व चंदैनी गोंदा के विसर्जन की खबर भी उड़ी थी, इस पर आपको क्या कहना है ? प्रत्युत्तर में खुमानलाल साव ने कहा था - "यह खबर कुछ विघ्न संतोषियों द्वारा उड़ाई गई थी। चंदैनी गोंदा कोई देव प्रतिमा नहीं है जिसका पूजन के बाद विसर्जन का दिया जाए। जब तक छत्तीसगढ़ के लोगों का स्नेह मिलता रहेगा, चंदैनी गोंदा की अविराम यात्रा जारी रहेगी"। इस उत्तर के अनुरूप चंदैनी गोंदा की अविराम यात्रा आज भी अविराम चल रही है।
जैसा कि ऊपर कहा गया है, खुमानलाल साव ने स्वतंत्र रूप से चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच) का संचालन 1981 से जीवन पर्यन्त करते रहे। दाऊ रामचंद्र देशमुख के जीवन काल में भी इसका मंचन होता रहा है जिससे यह प्रतीत होता है कि दाऊ जी की भी सहमति रही होगी अन्यथा वे आपत्ति जरूर प्रकट करते।
मैं उस पीढ़ी से हूँ जिसे ग्राम बघेरा स्थित दाऊ जी की हवेली में चंदैनी गोंदा में कलाकारों को रिहर्सल करते हुए देखने का सौभाग्य प्राप्त है। मैंने दाऊजी द्वारा सृजित चंदैनी गोंदा के कई मंच रात भर जाग कर देखे हैं। मैंने खुमानलाल साव के संचालन में चंदैनी गोंदा (छत्तीसगढ़ी सांस्कृतिक मंच) की प्रस्तुति देखी है। मुझे कविता वासनिक की कविता यामिनी और अनुराग-धारा
भी देखने का सौभाग्य प्राप्त है। चंदैनी गोंदा की टीम के साथ जबलपुर में जाकर दो आडियो कैसेट्स "मया-मंजरी" और "छत्तीसगढ़ के माटी अंव" की रिकार्डिंग भी करवाई है।
विगत पाँच दशकों से चंदैनी गोंदा को जान-सुन रहा हूँ। मैं सोचता हूँ कि यदि खुमानलाल साव ने चंदैनी-गोंदा का संचालन नहीं किया होता तो मेरे बाद की पीढ़ी "चंदैनी गोंदा" में नाम से अपरिचित ही रह जाती । धन्य हैं खुमानलाल साव जिन्होंने चंदैनी गोंदा को स्मृतियों में खोने नहीं दिया, किन्तु उनके जाने के बाद अब क्या होगा ? क्या चंदैनी गोंदा के कलाकार उसी गरिमा के साथ इसके अस्तित्व को बनाये रख पाएंगे ? या कविता विवेक वासनिक को ही एक नई जिम्मेदारी उठानी पड़ेगी। देखें आने वाला वक्त इन प्रश्नों का क्या उत्तर देता है।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
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