अरुण के दुमदार दोहे -
हमें लगे तो रीत है, उन्हें लगे तो चोट।
हम सस्ते-से नारियल, वे महँगे अखरोट।।
मगर हम मान दिलाते।
चोट हम नहीं दिखाते।।
हम दुर्बल से बाँस हैं, वे सशक्त सागौन।
जग के काष्ठागार में, हमें पूछता कौन ?
शोर हम नहीं मचाते।
बाँसुरी मधुर सुनाते।।
उनके सीने पर पदक, नयनों में है भेद।
हम रखते हैं प्रेम-दृग, सीने में हैं छेद।।
भले वे भाग्य विधाता।
किन्तु हम हैं निर्माता।।
हम अनुभव से जानते, किसकी क्या औकात।
लेकिन हम कहते नहीं, अपने मन की बात।।
मौन को समझो भाई।
मौन में शक्ति समाई।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
हमें लगे तो रीत है, उन्हें लगे तो चोट।
हम सस्ते-से नारियल, वे महँगे अखरोट।।
मगर हम मान दिलाते।
चोट हम नहीं दिखाते।।
हम दुर्बल से बाँस हैं, वे सशक्त सागौन।
जग के काष्ठागार में, हमें पूछता कौन ?
शोर हम नहीं मचाते।
बाँसुरी मधुर सुनाते।।
उनके सीने पर पदक, नयनों में है भेद।
हम रखते हैं प्रेम-दृग, सीने में हैं छेद।।
भले वे भाग्य विधाता।
किन्तु हम हैं निर्माता।।
हम अनुभव से जानते, किसकी क्या औकात।
लेकिन हम कहते नहीं, अपने मन की बात।।
मौन को समझो भाई।
मौन में शक्ति समाई।।
अरुण कुमार निगम
आदित्य नगर, दुर्ग
छत्तीसगढ़
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